भारतीय संविधान भाग 2: नागरिकता और सामाजिक न्याय की दिशा भारत का संविधान, दुनिया के सबसे विस्तृत और समावेशी संविधानों में से एक है, जो न केवल राज्य की संरचना और प्रशासन के ढांचे को निर्धारित करता है, बल्कि नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को भी स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है। भारतीय संविधान का भाग 2 भारतीय नागरिकता से संबंधित है, जो एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के मूलभूत ताने-बाने को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नागरिकता की परिभाषा और महत्व संविधान का भाग 2 भारतीय नागरिकता को परिभाषित करता है, यह स्पष्ट करता है कि एक व्यक्ति को भारतीय नागरिकता कब और कैसे प्राप्त होती है, और किन परिस्थितियों में यह समाप्त हो सकती है। नागरिकता, किसी भी देश में व्यक्ति और राज्य के बीच एक संप्रभु संबंध को स्थापित करती है। यह एक व्यक्ति को अपने अधिकारों का दावा करने का अधिकार देती है और साथ ही राज्य के प्रति उसकी जिम्मेदारियों को भी स्पष्ट करती है। भारतीय संविधान में नागरिकता की प्राप्ति के विभिन्न आधार हैं, जैसे जन्म, वंश, और पंजीकरण के माध्यम से। यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति, जो भारत...
✅ अध्याय 3: समानता – विस्तृत और परीक्षा उपयोगी नोट्स 🔹 1. परिचय ✅ समानता की परिभाषा: समानता वह सिद्धांत है, जो समाज में प्रत्येक व्यक्ति को बिना भेदभाव के समान अधिकार, अवसर और सम्मान प्रदान करता है। ✅ महत्व: यह लोकतंत्र की आधारशिला है, जो स्वतंत्रता और न्याय के साथ मिलकर एक समावेशी समाज का निर्माण करती है। समाज में शांति, समरसता और सामाजिक न्याय को स्थापित करती है। ✅ ऐतिहासिक संदर्भ: फ्रांसीसी क्रांति (1789): "स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व" का नारा समानता का प्रतीक बना। अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम (1776): समानता को नागरिक अधिकारों का आधार बनाया गया। अबराहम लिंकन: अमेरिका में दास प्रथा का उन्मूलन कर समानता को बढ़ावा दिया। ✅ भारतीय संदर्भ: भारतीय संविधान में समानता को मौलिक अधिकार के रूप में शामिल किया गया है। अनुच्छेद 14-18: समानता के अधिकार को कानूनी सुरक्षा प्रदान करते हैं। जाति, धर्म, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव निषेध है। 🔹 2. समानता का अर्थ ✅ मूल विचार: समानता का अर्थ सभी व्यक्तियों के साथ निष्पक्ष और समान व्यवहार करना है, बिना उनकी सामा...