भारतीय संविधान भाग 2: नागरिकता और सामाजिक न्याय की दिशा भारत का संविधान, दुनिया के सबसे विस्तृत और समावेशी संविधानों में से एक है, जो न केवल राज्य की संरचना और प्रशासन के ढांचे को निर्धारित करता है, बल्कि नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को भी स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है। भारतीय संविधान का भाग 2 भारतीय नागरिकता से संबंधित है, जो एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के मूलभूत ताने-बाने को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नागरिकता की परिभाषा और महत्व संविधान का भाग 2 भारतीय नागरिकता को परिभाषित करता है, यह स्पष्ट करता है कि एक व्यक्ति को भारतीय नागरिकता कब और कैसे प्राप्त होती है, और किन परिस्थितियों में यह समाप्त हो सकती है। नागरिकता, किसी भी देश में व्यक्ति और राज्य के बीच एक संप्रभु संबंध को स्थापित करती है। यह एक व्यक्ति को अपने अधिकारों का दावा करने का अधिकार देती है और साथ ही राज्य के प्रति उसकी जिम्मेदारियों को भी स्पष्ट करती है। भारतीय संविधान में नागरिकता की प्राप्ति के विभिन्न आधार हैं, जैसे जन्म, वंश, और पंजीकरण के माध्यम से। यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति, जो भारत...
अधिकार अधिकार का अर्थ - अधिकार व्यक्तियों द्वारा की गई मांगें हैं, जिन्हें समाज द्वारा स्वीकार किया जाता है और राज्य द्वारा लागू किया जाता है। → समाज में स्वीकृति मिले बिना मांग अधिकार का रूप नहीं ले सकती। कुछ गतिविधियाँ जिन्हें अधिकार नहीं माना जा सकता वे गतिविधियाँ जो समाज के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए हानिकारक हैं। -जैसे धूम्रपान -नशीली या प्रतिबंधित दवाओं का सेवन। → मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा => विश्व के सभी देशों के नागरिकों को अभी तक पूर्ण अधिकार नहीं मिले हैं। इस दिशा में 10 दिसंबर 1948 को संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को अपनाया और लागू किया। → मानवाधिकार दिवस - 10 दिसंबर (प्रत्येक वर्ष) अधिकार क्यों आवश्यक हैं- व्यक्ति की स्वतंत्रता और उसकी गरिमा की सुरक्षा के लिए। => लोकतांत्रिक सरकार को सुचारु रूप से चलाना। => व्यक्ति की प्रतिभा एवं क्षमता का विकास करना। =>व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए। => अधिकारों के बिना व्यक्ति बंद पिंजरे में बं...