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Showing posts with the label 12 Political Science Notes

The Evolution of Indian Citizenship: Insights from Part 2 of the Constitution

भारतीय संविधान भाग 2: नागरिकता और सामाजिक न्याय की दिशा भारत का संविधान, दुनिया के सबसे विस्तृत और समावेशी संविधानों में से एक है, जो न केवल राज्य की संरचना और प्रशासन के ढांचे को निर्धारित करता है, बल्कि नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को भी स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है। भारतीय संविधान का भाग 2 भारतीय नागरिकता से संबंधित है, जो एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के मूलभूत ताने-बाने को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नागरिकता की परिभाषा और महत्व संविधान का भाग 2 भारतीय नागरिकता को परिभाषित करता है, यह स्पष्ट करता है कि एक व्यक्ति को भारतीय नागरिकता कब और कैसे प्राप्त होती है, और किन परिस्थितियों में यह समाप्त हो सकती है। नागरिकता, किसी भी देश में व्यक्ति और राज्य के बीच एक संप्रभु संबंध को स्थापित करती है। यह एक व्यक्ति को अपने अधिकारों का दावा करने का अधिकार देती है और साथ ही राज्य के प्रति उसकी जिम्मेदारियों को भी स्पष्ट करती है। भारतीय संविधान में नागरिकता की प्राप्ति के विभिन्न आधार हैं, जैसे जन्म, वंश, और पंजीकरण के माध्यम से। यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति, जो भारत...

India's Suspension of the Indus Waters Treaty: Strategic, Ethical and Diplomatic Implications

भारत का सिंधु जल संधि स्थगन निर्णय: रणनीतिक, नैतिक और कूटनीतिक विश्लेषण | Gynamic GK भारत का सिंधु जल संधि स्थगन निर्णय: रणनीतिक, नैतिक और कूटनीतिक विश्लेषण प्रकाशित तिथि: 24 अप्रैल 2025 | लेखक: Gynamic GK Team भूमिका 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए हैं। इसके जवाब में भारत सरकार ने सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty - IWT) को अस्थायी रूप से स्थगित करने का निर्णय लिया। यह केवल कूटनीतिक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि रणनीतिक नीति, नैतिक विवेक और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में भारत की बदली प्राथमिकताओं का प्रतीक है। "पानी जीवन का आधार है, परंतु कूटनीति में यह शांति और युद्ध दोनों का हथियार बन सकता है।" 1. सिंधु जल संधि: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि संधि पर हस्ताक्षर: 19 सितंबर 1960 को भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पा...

Cold War and Non-Aligned Movement: A Detailed Study

12th Political Science : Essential for Background. Cold War and Non-Aligned Movement: A Detailed Study. ✍️ By ARVIND SINGH PK REWA शीत युद्ध का अर्थ और परिभाषा शीत युद्ध (Cold War) द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ (USSR) के बीच उत्पन्न वैचारिक, कूटनीतिक और सामरिक संघर्ष को कहते हैं। यह प्रत्यक्ष युद्ध नहीं था, बल्कि मनोवैज्ञानिक, राजनीतिक, आर्थिक और प्रचार युद्ध था। दोनों महाशक्तियों के बीच सैन्य प्रतिस्पर्धा, गुप्तचरी, हथियारों की होड़ और प्रचार अभियान इसके मुख्य पहलू थे। ✅ प्रथम प्रयोग: "शीत युद्ध" शब्द का सर्वप्रथम उपयोग अमेरिकी राजनीतिज्ञ बर्नार्ड बैरूच ने 16 अप्रैल 1947 को किया था, लेकिन इसे लोकप्रियता पत्रकार वॉल्टर लिपमैन की पुस्तक The Cold War (1947) से मिली। 📚 शीत युद्ध की परिभाषाएँ डॉ. एम.एस. राजन: "शीत युद्ध सत्ता संघर्ष की राजनीति का मिश्रित परिणाम है। यह दो विरोधी विचारधाराओं और जीवन पद्धतियों के संघर्ष का परिणाम है।" डी.एफ. फ्लेमिंग: "शीत युद्ध वह युद्ध है, जो युद्धभूमि पर नहीं, बल्कि लोगों के मन-मस्तिष्क में लड़ा ज...

End of Bipolarity 12th Political Science Notes

 सोवियत संघ का विघटन और इसके वैश्विक प्रभाव सोवियत संघ (USSR) का विघटन 1991 में हुआ, जिसने द्विध्रुवीय विश्व व्यवस्था (Bipolar World Order) के अंत की शुरुआत की। यह घटना न केवल अंतरराष्ट्रीय राजनीति का एक महत्वपूर्ण मोड़ थी, बल्कि इसने वैश्विक अर्थव्यवस्था, कूटनीति और शक्ति संतुलन को भी गहराई से प्रभावित किया। सोवियत संघ का पतन केवल एक देश का विघटन नहीं था, बल्कि यह समाजवादी व्यवस्था के पतन और पूंजीवादी व्यवस्था की विजय के रूप में देखा गया। इस निबंध में, हम सोवियत संघ के विघटन के कारणों, इसके प्रभावों और भारत सहित विश्व राजनीति पर इसके प्रभाव का विश्लेषण करेंगे। सोवियत संघ का गठन और विशेषताएँ सोवियत संघ की स्थापना सोवियत संघ (Union of Soviet Socialist Republics - USSR) की स्थापना 1922 में हुई थी। यह 15 गणराज्यों (Republics) का एक संघ था, जिसमें रूस, यूक्रेन, बेलारूस, कजाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान आदि शामिल थे। यह समाजवादी (Socialist) विचारधारा पर आधारित था, जिसका उद्देश्य समानता और राज्य के नियंत्रण वाली अर्थव्यवस्था स्थापित करना था। सोवियत संघ की विशेषताएं 1. राज्य...

Recent Development In Indian Politics : Class 12th Notes in hindi

 भारतीय राजनीति में हालिया परिवर्तन भारत की राजनीति ने 1980 के दशक के अंत से लेकर अब तक कई महत्वपूर्ण बदलाव देखे हैं। इस दौरान एक-दलीय वर्चस्व (Single-Party Dominance) की समाप्ति, गठबंधन सरकारों (Coalition Governments) का उदय, आर्थिक उदारीकरण (Economic Liberalization), जाति आधारित राजनीति (Caste-Based Politics), और धार्मिक मुद्दों (Religious Issues) का राजनीति पर प्रभाव प्रमुख रहे। इस लेख में 1989 से लेकर वर्तमान तक की राजनीतिक घटनाओं का विश्लेषण किया गया है, जिससे भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर पड़े प्रभाव को समझा जा सके। 1. 1990 का दशक: भारतीय राजनीति का एक नया मोड़ 1980 के दशक के अंत और 1990 के दशक की शुरुआत में भारतीय राजनीति में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। कांग्रेस के वर्चस्व का पतन, मंडल आयोग की सिफारिशों का क्रियान्वयन, नई आर्थिक नीति, राम जन्मभूमि आंदोलन, और गठबंधन सरकारों का दौर इसी समय शुरू हुआ। 1.1 कांग्रेस का पतन और बहुदलीय राजनीति की शुरुआत 1947 से 1989 तक भारतीय राजनीति में कांग्रेस पार्टी का दबदबा था। लेकिन 1989 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को 197 सीटों पर सिमट जा...

12th Political Science Notes Chapter-6 : The Crisis Of Democratic Order

  आपातकाल (1975-77) – भारतीय लोकतंत्र का सबसे बड़ा संकट यह नोट्स 12वीं कक्षा के राजनीति विज्ञान के "लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट" अध्याय का संपूर्ण विश्लेषण प्रस्तुत करता है। इसमें 1975-77 के आपातकाल की पृष्ठभूमि, कारण, प्रभाव और इसके परिणामों को विस्तार से समझाया गया है। मुख्य बिंदु: राजनीतिक परिप्रेक्ष्य (1971-75): इंदिरा गांधी की सरकार को बढ़ते असंतोष और विपक्षी आंदोलनों का सामना करना पड़ा। आर्थिक संकट: बांग्लादेश युद्ध, 1973 का तेल संकट, महंगाई और बेरोजगारी। न्यायिक फैसले और विरोध: इलाहाबाद हाईकोर्ट का निर्णय और जयप्रकाश नारायण का संपूर्ण क्रांति आंदोलन। आपातकाल की घोषणा: अनुच्छेद 352 के तहत मौलिक अधिकारों का निलंबन, प्रेस सेंसरशिप और विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी। संवैधानिक परिवर्तन: 42वां और 44वां संविधान संशोधन, आपातकाल के दुरुपयोग को रोकने के लिए सुधार। राजनीतिक परिणाम: 1977 का आम चुनाव, जनता पार्टी की जीत और कांग्रेस की ऐतिहासिक हार। यह विषय भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने भविष्य में संवैधानिक सुरक्षा उपायों को मजबूत किया। आपातकाल की पृष्ठभूम...

12th Political Science Important Question-Answer : Globalization

बहुत छोटे उत्तर वाले प्रश्न (1 अंक) 1. वैश्वीकरण को परिभाषित करें। वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं, सूचना, संस्कृति और प्रौद्योगिकी के आदान-प्रदान के माध्यम से परस्पर जुड़ाव और परस्पर निर्भरता बढ़ती है। 2. वैश्वीकरण की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? व्यापार और निवेश के माध्यम से अर्थव्यवस्थाओं का एकीकरण। प्रौद्योगिकी और संचार का प्रसार। सांस्कृतिक आदान-प्रदान और समरूपीकरण। बहुराष्ट्रीय निगमों (MNCs) की बढ़ती भूमिका। 3. वैश्वीकरण को बढ़ावा देने वाले दो अंतरराष्ट्रीय संगठनों के नाम बताइए। विश्व व्यापार संगठन (WTO) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) 4. "सांस्कृतिक समरूपीकरण" का क्या अर्थ है? सांस्कृतिक समरूपीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें स्थानीय संस्कृतियाँ वैश्विक संस्कृति के प्रभाव में आकर एक जैसी हो जाती हैं, जो अक्सर पश्चिमी मूल्यों से प्रभावित होती हैं। 5. वैश्वीकरण का अर्थव्यवस्था पर कोई एक प्रभाव बताइए। वैश्वीकरण के कारण अंतरराष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि हुई है, जिससे देशों को नए बाजारों तक पहुँचने और अपनी अर्थव्यवस्था का विस्तार करने का अवसर मिला है। छ...

12th राजनीति विज्ञान अध्याय 1.2 : द्विध्रुवीयता का अंत (End of Bipolarity)

अध्याय-1.2 : द्विध्रुवीयता का अंत समाजवादी सोवियत गणराज्य(Union of Soviet Socialist Republics-USSR) लेनिन के नेतृत्व में रूस में हुई बोल्शेविक/साम्यवादी क्रांति 1917 के बाद 1922 में अस्तित्व में आया। यह क्रांति पूंजीवादी व्यवस्था के विरोध में हुई थी और समाजवादी के आदर्शों व समतामूलक समाज की जरूरत से प्रेरित थी। यह क्रांति निजी संपत्ति की संस्था को समाप्त करने और समाज मे समानता स्थापित करने की सबसे बड़ी कोशिश थी। सोवियत प्रणाली की विशेषताएं सोवियत राजनीतिक प्रणाली की धुरी कम्युनिस्ट पार्टी थी।जिसमे किसी अन्य राजनीतिक दल या विपक्ष के लिए जगह नही था। नियोजित अर्थव्यवस्था अर्थात सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था सरकार के पूर्ण नियंत्रण में थी। दूसरी दुनिया के देशों का नेता था। अमेरिका के अतिरिक्त विश्व के सभी देशों से इसकी अर्थव्यवस्था सबसे उन्नत थी। विशाल ऊर्जा के स्रोत(प्राकृतिक गैस, खनिज तेल) खनिज संसाधन( लोहा, इस्पात) व अन्य मशीनरी उत्पाद उपलब्ध थे। आवागमन और संचार के साधन बहुत उन्नत थे। घरेलू उपभोक्ता उद्योग बहुत उन्नत था। सुई से लेकर हवाई जहाज तक सभी चीजों का यहां उत्पादन होता था। हलाकि यहां उत्प...

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