भारतीय संविधान भाग 2: नागरिकता और सामाजिक न्याय की दिशा भारत का संविधान, दुनिया के सबसे विस्तृत और समावेशी संविधानों में से एक है, जो न केवल राज्य की संरचना और प्रशासन के ढांचे को निर्धारित करता है, बल्कि नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को भी स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है। भारतीय संविधान का भाग 2 भारतीय नागरिकता से संबंधित है, जो एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के मूलभूत ताने-बाने को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नागरिकता की परिभाषा और महत्व संविधान का भाग 2 भारतीय नागरिकता को परिभाषित करता है, यह स्पष्ट करता है कि एक व्यक्ति को भारतीय नागरिकता कब और कैसे प्राप्त होती है, और किन परिस्थितियों में यह समाप्त हो सकती है। नागरिकता, किसी भी देश में व्यक्ति और राज्य के बीच एक संप्रभु संबंध को स्थापित करती है। यह एक व्यक्ति को अपने अधिकारों का दावा करने का अधिकार देती है और साथ ही राज्य के प्रति उसकी जिम्मेदारियों को भी स्पष्ट करती है। भारतीय संविधान में नागरिकता की प्राप्ति के विभिन्न आधार हैं, जैसे जन्म, वंश, और पंजीकरण के माध्यम से। यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति, जो भारत...
✍️ अधिकार: परिभाषा, प्रकार, उत्पत्ति, संरक्षण और परीक्षा उपयोगी तथ्य ✅ 1. अधिकार का अर्थ और महत्व परिभाषा: अधिकार वे वैध मांगें हैं, जो व्यक्ति करता है, समाज स्वीकार करता है और राज्य उन्हें लागू करता है। विशेषता: अधिकार सामाजिक मान्यता और कानूनी संरक्षण प्राप्त होते हैं। महत्व: व्यक्ति की गरिमा और स्वतंत्रता की रक्षा। लोकतंत्र को सशक्त बनाना। सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास को प्रोत्साहन। उदाहरण: शिक्षा का अधिकार (RTE, 2009) – 6-14 वर्ष के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार। परीक्षा टिप: "समाज + राज्य = अधिकार" फॉर्मूला याद रखें। ⚖️ 2. अधिकार नहीं मानी जाने वाली गतिविधियाँ परिभाषा: वे कार्य जो समाज के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए हानिकारक होते हैं, अधिकार नहीं माने जाते। उदाहरण: धूम्रपान या नशीली दवाओं का सेवन (स्वास्थ्य को नुकसान)। सड़क पर तेज गति से वाहन चलाना (दूसरों की सुरक्षा को खतरा)। कारण: ये दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। परीक्षा नोट: "हानिकारक = अधिकार नहीं" सूत्र याद रखें। 🌍 3. मानव अधिकारों की सार्व...