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The Evolution of Indian Citizenship: Insights from Part 2 of the Constitution

भारतीय संविधान भाग 2: नागरिकता और सामाजिक न्याय की दिशा भारत का संविधान, दुनिया के सबसे विस्तृत और समावेशी संविधानों में से एक है, जो न केवल राज्य की संरचना और प्रशासन के ढांचे को निर्धारित करता है, बल्कि नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को भी स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है। भारतीय संविधान का भाग 2 भारतीय नागरिकता से संबंधित है, जो एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के मूलभूत ताने-बाने को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नागरिकता की परिभाषा और महत्व संविधान का भाग 2 भारतीय नागरिकता को परिभाषित करता है, यह स्पष्ट करता है कि एक व्यक्ति को भारतीय नागरिकता कब और कैसे प्राप्त होती है, और किन परिस्थितियों में यह समाप्त हो सकती है। नागरिकता, किसी भी देश में व्यक्ति और राज्य के बीच एक संप्रभु संबंध को स्थापित करती है। यह एक व्यक्ति को अपने अधिकारों का दावा करने का अधिकार देती है और साथ ही राज्य के प्रति उसकी जिम्मेदारियों को भी स्पष्ट करती है। भारतीय संविधान में नागरिकता की प्राप्ति के विभिन्न आधार हैं, जैसे जन्म, वंश, और पंजीकरण के माध्यम से। यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति, जो भारत...

Part I of the Constitution: Bridging India's Unity and Diversity

भारतीय संघ की संरचना: संविधान के भाग I का पुनरावलोकन प्रासंगिक प्रस्तावना स्वतंत्रता प्राप्ति के पचहत्तर वर्षों बाद, यह आवश्यक हो गया है कि हम उन संवैधानिक नींवों की पुनः समीक्षा करें जिन्होंने भारत को एक संप्रभु, लोकतांत्रिक और संघीय राष्ट्र के रूप में गढ़ा। भारतीय संविधान का भाग I, जो अनुच्छेद 1 से 4 तक विस्तृत है, भारत के संघीय स्वरूप, क्षेत्रीय संरचना और संस्थागत लचीलापन को परिभाषित करता है — और इस प्रकार एक ऐसे राष्ट्र की आधारशिला रखता है जो विविधता, संक्रमण और आकांक्षाओं को समाहित करने में सक्षम है। भारत: राज्यों का एक संघ, न कि संघों का समूह संविधान का अनुच्छेद 1 उद्घोषित करता है, "भारत, अर्थात इंडिया, राज्यों का एक संघ होगा।" 'संघ' शब्द का चयन, 'संघीय राज्य' के बजाय, पूर्णतः विचारोपरांत किया गया था। यह घोषणा करता है कि भारत एक अविच्छेद्य संघ है — अमेरिकी संघ की भांति संधिपरक (contractual) नहीं, बल्कि ऐसा ढांचा जिसमें राज्य अपनी सत्ता संविधान से प्राप्त करते हैं, न कि ऐतिहासिक संप्रभुता से। यह व्यवस्था संस्थापकों की उस दृष्टि को प्रतिबिंबित करती है, ...

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