भारतीय संविधान भाग 2: नागरिकता और सामाजिक न्याय की दिशा भारत का संविधान, दुनिया के सबसे विस्तृत और समावेशी संविधानों में से एक है, जो न केवल राज्य की संरचना और प्रशासन के ढांचे को निर्धारित करता है, बल्कि नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को भी स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है। भारतीय संविधान का भाग 2 भारतीय नागरिकता से संबंधित है, जो एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के मूलभूत ताने-बाने को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नागरिकता की परिभाषा और महत्व संविधान का भाग 2 भारतीय नागरिकता को परिभाषित करता है, यह स्पष्ट करता है कि एक व्यक्ति को भारतीय नागरिकता कब और कैसे प्राप्त होती है, और किन परिस्थितियों में यह समाप्त हो सकती है। नागरिकता, किसी भी देश में व्यक्ति और राज्य के बीच एक संप्रभु संबंध को स्थापित करती है। यह एक व्यक्ति को अपने अधिकारों का दावा करने का अधिकार देती है और साथ ही राज्य के प्रति उसकी जिम्मेदारियों को भी स्पष्ट करती है। भारतीय संविधान में नागरिकता की प्राप्ति के विभिन्न आधार हैं, जैसे जन्म, वंश, और पंजीकरण के माध्यम से। यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति, जो भारत...
अरस्तू के राजनीतिक विचार उनके ग्रंथ Politics में विस्तृत रूप से मिलते हैं। उन्होंने राज्य, शासन प्रणाली, नागरिकता, न्याय और कल्याण के महत्व पर अपने विचार प्रस्तुत किए हैं। उनके राजनीतिक विचारों के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं: 1. राज्य का स्वाभाविक विकास (State as a Natural Institution) अरस्तू के अनुसार, मनुष्य स्वाभाविक रूप से एक राजनीतिक प्राणी (Political Animal) है। राज्य परिवार और गांव के विकास का स्वाभाविक परिणाम है। राज्य का उद्देश्य "सर्वोच्च भलाई" (Highest Good) की प्राप्ति है। 2. शासन के प्रकारों का वर्गीकरण (Classification of Governments) अरस्तू ने शासन को दो आधारों पर वर्गीकृत किया: 1. सकारात्मक रूप (Good Forms): राजतंत्र (Monarchy): एक व्यक्ति का राज्य हित में शासन। अभिजाततंत्र (Aristocracy): कुछ श्रेष्ठ व्यक्तियों का राज्य हित में शासन। लोक शासन (Polity): जनता का सामूहिक रूप से राज्य हित में शासन। 2. नकारात्मक रूप (Perverted Forms): अत्याचार (Tyranny): एक व्यक्ति का अपने स्वार्थ के लिए शासन। कुलीनतंत्र (Oligarchy): अमीरों का अपने स्वार्थ के लिए शासन। भीड़तंत्र (De...