भारतीय संविधान भाग 2: नागरिकता और सामाजिक न्याय की दिशा भारत का संविधान, दुनिया के सबसे विस्तृत और समावेशी संविधानों में से एक है, जो न केवल राज्य की संरचना और प्रशासन के ढांचे को निर्धारित करता है, बल्कि नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को भी स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है। भारतीय संविधान का भाग 2 भारतीय नागरिकता से संबंधित है, जो एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के मूलभूत ताने-बाने को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नागरिकता की परिभाषा और महत्व संविधान का भाग 2 भारतीय नागरिकता को परिभाषित करता है, यह स्पष्ट करता है कि एक व्यक्ति को भारतीय नागरिकता कब और कैसे प्राप्त होती है, और किन परिस्थितियों में यह समाप्त हो सकती है। नागरिकता, किसी भी देश में व्यक्ति और राज्य के बीच एक संप्रभु संबंध को स्थापित करती है। यह एक व्यक्ति को अपने अधिकारों का दावा करने का अधिकार देती है और साथ ही राज्य के प्रति उसकी जिम्मेदारियों को भी स्पष्ट करती है। भारतीय संविधान में नागरिकता की प्राप्ति के विभिन्न आधार हैं, जैसे जन्म, वंश, और पंजीकरण के माध्यम से। यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति, जो भारत...
भारतीय संविधान के स्रोत भारतीय संविधान में सम्मिलित विभिन्न प्रावधान अलग-अलग स्रोतों से ग्रहण किए गए हैं। जिनका विवरण इस प्रकार है- 1- भारत शासन अधिनियम 1935 भारतीय संविधान का बहुसंख्यक भाग भारत शासन अधिनियम 1935 से ग्रहण किया गया है। संविधान के 395 अनुच्छेदों में से लगभग 200 अनुच्छेद हुबहू या थोड़े संशोधनों के साथ इसी अधिनियम द्वारा ग्रहण किए गए हैं। इस अधिनियम से ग्रहण किए गए प्रावधानों में संघीय शासन व्यवस्था, राज्यपाल का पद, तीनों सूचियां (संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची) मुख्य हैं। 2- ब्रिटिश संविधान भारत का शासन 150 से अधिक वर्षों तक ब्रिटिश संसद द्वारा बनाए गए कानूनों द्वारा संचालित होता था। अतः भारतीय संविधान ब्रिटिश संविधान से प्रभावित होना स्वाभाविक था। ब्रिटिश संविधान द्वारा ग्रहण किए गए मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं - संसदीय शासन प्रणाली, विधि निर्माण प्रक्रिया, विधि का शासन, स्पीकर का पद, एकल नागरिकता तथा सापेक्ष मतों से चुनाव में जीत आदि। 3- अमेरिकी संविधान अमेरिकी संघात्मक व्यवस्था पूरे विश्व के लिए संघात्मक शासन के एक...