सोवियत संघ का विघटन और इसके वैश्विक प्रभाव
सोवियत संघ (USSR) का विघटन 1991 में हुआ, जिसने द्विध्रुवीय विश्व व्यवस्था (Bipolar World Order) के अंत की शुरुआत की। यह घटना न केवल अंतरराष्ट्रीय राजनीति का एक महत्वपूर्ण मोड़ थी, बल्कि इसने वैश्विक अर्थव्यवस्था, कूटनीति और शक्ति संतुलन को भी गहराई से प्रभावित किया। सोवियत संघ का पतन केवल एक देश का विघटन नहीं था, बल्कि यह समाजवादी व्यवस्था के पतन और पूंजीवादी व्यवस्था की विजय के रूप में देखा गया। इस निबंध में, हम सोवियत संघ के विघटन के कारणों, इसके प्रभावों और भारत सहित विश्व राजनीति पर इसके प्रभाव का विश्लेषण करेंगे।
सोवियत संघ का गठन और विशेषताएँ
सोवियत संघ की स्थापना
सोवियत संघ (Union of Soviet Socialist Republics - USSR) की स्थापना 1922 में हुई थी। यह 15 गणराज्यों (Republics) का एक संघ था, जिसमें रूस, यूक्रेन, बेलारूस, कजाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान आदि शामिल थे। यह समाजवादी (Socialist) विचारधारा पर आधारित था, जिसका उद्देश्य समानता और राज्य के नियंत्रण वाली अर्थव्यवस्था स्थापित करना था।
सोवियत संघ की विशेषताएं
1. राज्य-नियंत्रित अर्थव्यवस्था – सरकार सभी प्रमुख उद्योगों, बैंकों, परिवहन और व्यापार पर नियंत्रण रखती थी।
2. एकदलीय शासन (One-Party System) – केवल कम्युनिस्ट पार्टी को सत्ता में रहने की अनुमति थी।
3. केंद्रीकृत योजना (Centralized Planning) – सभी आर्थिक गतिविधियाँ सरकार की योजनाओं के अनुसार संचालित होती थीं।
4. राजनीतिक दमन – किसी भी प्रकार की असहमति को बर्दाश्त नहीं किया जाता था।
5. वैश्विक महाशक्ति – सोवियत संघ द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका के साथ एक सुपरपावर बन गया और शीत युद्ध (Cold War) की शुरुआत हुई।
सोवियत संघ के विघटन के कारण
सोवियत संघ का विघटन अचानक नहीं हुआ, बल्कि यह कई दशकों से विकसित हो रही समस्याओं का परिणाम था। इसे मुख्य रूप से आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और अंतरराष्ट्रीय कारणों में विभाजित किया जा सकता है।
1. आर्थिक कारण
अर्थव्यवस्था का ठहराव (Economic Stagnation) – 1970 के दशक से सोवियत अर्थव्यवस्था कमजोर पड़ने लगी। सरकार ने भारी मात्रा में सैन्य खर्च किया, जिससे विकासशील क्षेत्रों पर निवेश कम हो गया।
औद्योगिक पिछड़ापन – सोवियत संघ के उद्योग तकनीकी रूप से अमेरिका और पश्चिमी यूरोप से बहुत पीछे थे।
उपभोक्ता वस्तुओं की कमी – आम जनता को रोजमर्रा की चीजें जैसे खाद्य पदार्थ, कपड़े और इलेक्ट्रॉनिक्स प्राप्त करने में कठिनाई होती थी।
कृषि संकट – सामूहिक खेती (Collective Farming) असफल रही, जिससे खाद्य उत्पादन में कमी आई और सोवियत संघ को अनाज का आयात करना पड़ा।
2. राजनीतिक कारण
निरंकुश शासन – एकदलीय शासन प्रणाली (One-Party System) के कारण सरकार जनता की आकांक्षाओं को समझने में विफल रही।
भ्रष्टाचार और अक्षमता – सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार और लालफीताशाही (Bureaucracy) बढ़ गई, जिससे जनता में असंतोष फैला।
राष्ट्रवाद (Nationalism) का उदय – बाल्टिक राज्यों (एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया), यूक्रेन, जॉर्जिया और अन्य गणराज्यों में स्वतंत्रता की मांग बढ़ी।
3. सामाजिक और सांस्कृतिक कारण
ग्लासनोस्त और पेरेस्त्रोइका (Glasnost & Perestroika) – मिखाइल गोर्बाचेव (Mikhail Gorbachev) ने 1985 में ग्लासनोस्त (खुलापन) और पेरेस्त्रोइका (पुनर्गठन) की नीति अपनाई, जिससे जनता को बोलने की आज़ादी मिली और सरकार के प्रति असंतोष खुलकर सामने आने लगा।
युवा पीढ़ी का असंतोष – सोवियत संघ की नई पीढ़ी पश्चिमी देशों की समृद्धि से प्रभावित थी और वे अधिक स्वतंत्रता चाहते थे।
4. अंतरराष्ट्रीय कारण
अफगानिस्तान युद्ध (1979-1989) – सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में सैन्य हस्तक्षेप किया, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव पड़ा और जनता में असंतोष बढ़ा।
अमेरिका के साथ हथियारों की दौड़ (Arms Race) – अमेरिका और सोवियत संघ के बीच हथियारों की प्रतिस्पर्धा चल रही थी, जिससे सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था पर और अधिक भार पड़ा।
पश्चिमी मीडिया और प्रचार – पश्चिमी मीडिया ने सोवियत शासन की विफलताओं को उजागर किया, जिससे जनता में असंतोष बढ़ा।
सोवियत संघ के विघटन की प्रक्रिया
1. 1989 – बर्लिन की दीवार (Berlin Wall) का पतन हुआ, जिससे पूर्वी यूरोप में कम्युनिस्ट शासन कमजोर पड़ने लगा।
2. 1990 – लिथुआनिया, एस्टोनिया, और लातविया ने स्वतंत्रता की घोषणा की।
3. 1991 – अगस्त में कम्युनिस्ट नेताओं ने गोर्बाचेव के खिलाफ तख्तापलट करने की कोशिश की, लेकिन जनता ने इसका विरोध किया।
4. 25 दिसंबर 1991 – गोर्बाचेव ने इस्तीफा दिया और सोवियत संघ आधिकारिक रूप से विघटित हो गया।
सोवियत संघ के विघटन के प्रभाव
1. वैश्विक प्रभाव
शीत युद्ध का अंत – अमेरिका एकमात्र महाशक्ति (Superpower) बन गया और द्विध्रुवीय विश्व (Bipolar World) समाप्त हो गया।
नया विश्व व्यवस्था (New World Order) – पूंजीवाद और उदार लोकतंत्र (Liberal Democracy) का प्रभाव बढ़ा।
संयुक्त राष्ट्र में बदलाव – रूस ने सोवियत संघ की जगह ली और UN सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट प्राप्त की।
2. रूस और पूर्व सोवियत गणराज्यों पर प्रभाव
शॉक थेरेपी (Shock Therapy) – रूस और अन्य गणराज्यों ने तेजी से पूंजीवाद अपनाने की कोशिश की, लेकिन इससे आर्थिक संकट, बेरोजगारी और गरीबी बढ़ी।
नए स्वतंत्र राष्ट्रों का जन्म – रूस, यूक्रेन, कजाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान आदि स्वतंत्र राष्ट्र बने।
3. भारत पर प्रभाव
भारत-रूस संबंध मजबूत बने – भारत ने रूस के साथ रक्षा, ऊर्जा और व्यापार संबंध बनाए रखे।
आर्थिक उदारीकरण (Liberalization) – 1991 में भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को उदार बनाया और वैश्विक बाज़ार के लिए खोला।
निष्कर्ष
सोवियत संघ का विघटन इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक था, जिसने वैश्विक शक्ति संतुलन को बदल दिया। यह घटना दर्शाती है कि राजनीतिक दमन, आर्थिक कुप्रबंधन और असंतोष किसी भी महाशक्ति को गिरा सकता है। सोवियत संघ के पतन से यह भी स्पष्ट हुआ कि कोई भी प्रणाली अगर समय के साथ खुद को सुधार नहीं पाती, तो वह समाप्त हो जाती है।
आज रूस और पूर्व सोवियत गणराज्य अपनी पहचान स्थापित कर चुके हैं, लेकिन सोवियत संघ का प्रभाव अभी भी विश्व राजनीति में देखा जाता है।
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