1999: एक वोट से गिरी वाजपेयी सरकार और शरद पवार का 26 साल बाद खुलासा
भारतीय राजनीति के इतिहास में कई घटनाएँ ऐसी हुई हैं, जिन्होंने सत्ता संतुलन को पूरी तरह से बदल दिया। इनमें से एक सबसे अहम घटना 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार का गिरना था, जो मात्र एक वोट से हार गई थी। यह घटना भारतीय लोकतंत्र के लिए एक निर्णायक मोड़ थी, क्योंकि इसके बाद देश में राजनीतिक समीकरण पूरी तरह बदल गए।
अब, 26 साल बाद, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के प्रमुख शरद पवार ने इस मामले पर बड़ा खुलासा किया है। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव के दौरान पर्दे के पीछे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके कारण वाजपेयी सरकार गिर गई। उनके इस बयान ने 1999 की उस ऐतिहासिक घटना को फिर से चर्चा में ला दिया है।
1999: वाजपेयी सरकार का अविश्वास प्रस्ताव
पृष्ठभूमि: जयललिता का समर्थन वापसी
1998 में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार बनी थी, जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने। लेकिन उनकी सरकार का पूरा अस्तित्व सहयोगी दलों के समर्थन पर निर्भर था। अन्नाद्रमुक (AIADMK) प्रमुख जयललिता वाजपेयी सरकार की सबसे अहम सहयोगी थीं, लेकिन उनके साथ भाजपा के संबंधों में तनाव बढ़ता गया।
1999 की शुरुआत में जयललिता ने सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी दी। इस राजनीतिक अस्थिरता के बीच, वाजपेयी सरकार को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा। जब मतदान हुआ, तो सरकार 269 बनाम 270 के अंतर से हार गई और वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।
शरद पवार का खुलासा: पर्दे के पीछे क्या हुआ था?
26 साल बाद, शरद पवार ने बताया कि उन्होंने उस समय किस तरह से एक अहम वोट को प्रभावित किया, जिससे वाजपेयी सरकार गिरी।
अविश्वास प्रस्ताव के दौरान क्या हुआ?
शरद पवार के अनुसार:
"1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के खिलाफ लाया गया अविश्वास प्रस्ताव 1 वोट से पारित हुआ था… मैंने वह वोट कैसे हासिल किया?"
उन्होंने आगे कहा:
"प्रस्ताव पेश होने के बाद… ब्रेक के दौरान मैंने किसी से बात की… फिर सत्तारूढ़ दल के एक व्यक्ति ने कुछ और फैसला कर लिया… और सरकार गिर गई।"
हालाँकि, उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि वह "सत्तारूढ़ दल का व्यक्ति" कौन था और किस तरह से निर्णय बदला गया। लेकिन उनका यह बयान यह संकेत देता है कि उस समय पर्दे के पीछे गुप्त राजनीतिक वार्ताएँ चल रही थीं, जिसने वाजपेयी सरकार के पतन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
वाजपेयी सरकार क्यों गिरी?
1. सहयोगी दलों में असंतोष
वाजपेयी सरकार को शुरू से ही गठबंधन सहयोगियों को संभालने में कठिनाई हो रही थी। जयललिता तमिलनाडु में राज्यपाल बदलने, भ्रष्टाचार के मामलों में हस्तक्षेप और अपने पसंदीदा अधिकारियों को नियुक्त करने जैसी मांगें रख रही थीं। भाजपा ने इन मांगों को पूरा करने से इनकार कर दिया, जिससे उन्होंने समर्थन वापस ले लिया।
2. अविश्वास प्रस्ताव का गणित
जब लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान हुआ, तो भाजपा के पास 269 सांसदों का समर्थन था, जबकि विपक्ष के पास 270 वोट थे। मात्र 1 वोट की हार ने सरकार को गिरा दिया।
3. बसपा और अन्य पार्टियों की भूमिका
बहुजन समाज पार्टी (BSP) प्रमुख मायावती ने भी अंतिम समय में अपना समर्थन वापस ले लिया। इसके अलावा, कुछ निर्दलीय सांसदों ने भी सरकार के खिलाफ वोट डाला।
वाजपेयी की हार के बाद क्या हुआ?
वाजपेयी सरकार के गिरने के बाद, विपक्षी दलों ने सरकार बनाने की कोशिश की, लेकिन वे स्थायी सरकार नहीं बना सके। नतीजतन, 1999 में फिर से आम चुनाव हुए। इस बार भाजपा ने अपने गठबंधन को मजबूत किया और अधिक स्थिर सरकार बनाई। वाजपेयी एक बार फिर प्रधानमंत्री बने और उन्होंने 2004 तक सफलतापूर्वक सरकार चलाई।
शरद पवार के बयान का महत्व
शरद पवार का यह बयान यह दर्शाता है कि राजनीति में सिर्फ संसद के भीतर होने वाला मतदान ही महत्वपूर्ण नहीं होता, बल्कि पर्दे के पीछे की चर्चाएँ और कूटनीतिक फैसले भी सरकारों को बचाने या गिराने में अहम भूमिका निभाते हैं।
1. राजनीतिक जोड़-तोड़ की ताकत
इस खुलासे से यह स्पष्ट होता है कि सिर्फ संख्याओं के आधार पर ही सरकारें नहीं बनतीं या गिरतीं, बल्कि नेताओं के बीच गुप्त समझौते और वार्ताएँ भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
2. विपक्ष की रणनीति
1999 में विपक्ष ने एकजुट होकर वाजपेयी सरकार को गिराया, लेकिन बाद में वे खुद सरकार नहीं बना सके। यह दिखाता है कि सिर्फ सरकार गिराना ही पर्याप्त नहीं होता, बल्कि स्थिरता भी आवश्यक होती है।
3. भाजपा के लिए सबक
इस घटना ने भाजपा को यह सिखाया कि गठबंधन की राजनीति में हर सहयोगी को महत्व देना जरूरी होता है। 1999 के बाद, भाजपा ने अपने गठबंधन सहयोगियों के साथ संबंध मजबूत किए और 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई।
निष्कर्ष
1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की हार भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी। यह न केवल भाजपा के लिए बल्कि समूचे भारतीय राजनीतिक परिदृश्य के लिए एक सीख थी।
शरद पवार द्वारा 26 साल बाद किया गया यह खुलासा यह दर्शाता है कि राजनीतिक खेल में केवल लोकसभा की बहस ही नहीं, बल्कि पीछे के दरवाजे से की गई चर्चाएँ भी बड़ी भूमिका निभाती हैं।
हालाँकि, अब यह घटना इतिहास का हिस्सा बन चुकी है, लेकिन यह भारतीय राजनीति के लिए एक सबक है कि एक वोट भी सत्ता की पूरी तस्वीर बदल सकता है।
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