भारतीय संविधान भाग 2: नागरिकता और सामाजिक न्याय की दिशा भारत का संविधान, दुनिया के सबसे विस्तृत और समावेशी संविधानों में से एक है, जो न केवल राज्य की संरचना और प्रशासन के ढांचे को निर्धारित करता है, बल्कि नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को भी स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है। भारतीय संविधान का भाग 2 भारतीय नागरिकता से संबंधित है, जो एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के मूलभूत ताने-बाने को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नागरिकता की परिभाषा और महत्व संविधान का भाग 2 भारतीय नागरिकता को परिभाषित करता है, यह स्पष्ट करता है कि एक व्यक्ति को भारतीय नागरिकता कब और कैसे प्राप्त होती है, और किन परिस्थितियों में यह समाप्त हो सकती है। नागरिकता, किसी भी देश में व्यक्ति और राज्य के बीच एक संप्रभु संबंध को स्थापित करती है। यह एक व्यक्ति को अपने अधिकारों का दावा करने का अधिकार देती है और साथ ही राज्य के प्रति उसकी जिम्मेदारियों को भी स्पष्ट करती है। भारतीय संविधान में नागरिकता की प्राप्ति के विभिन्न आधार हैं, जैसे जन्म, वंश, और पंजीकरण के माध्यम से। यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति, जो भारत...
Arvind Singh PK Rewa:
Here's the information about T.H. Marshall:
T.H. Marshall (1893-1981) was a renowned British sociologist and political scientist. He made significant contributions to the concept of citizenship and its development.
Marshall defined citizenship in his influential book "Citizenship and Social Class" (1949) as:
"Citizenship is a status bestowed on those who are full members of a community. All who possess the status are equal with respect to the rights and duties with which the status is endowed."
Marshall identified three key components of citizenship:
1. _Civil Rights_: rights necessary for individual freedom, equality, and justice.
2. _Political Rights_: rights to participate in the exercise of political power, such as voting and standing for election.
3. _Social Rights_: rights to economic security, education, healthcare, and social welfare.
Marshall's theory emphasizes that these three components of citizenship are interconnected and reinforce one another. He also argued that the development of citizenship is a historical process that evolves over time.
Arvind Singh PK Rewa:
टी.एच. मार्शल (टी.एच. मार्शल) एक प्रसिद्ध ब्रिटिश समाजशास्त्री और राजनीतिक वैज्ञानिक थे। उन्होंने नागरिकता (सिटीजनशिप) की अवधारणा पर महत्वपूर्ण काम किया और इसके विकास के बारे में एक प्रभावशाली सिद्धांत प्रस्तुत किया।
मार्शल ने अपने प्रसिद्ध पुस्तक "सिटीजनशिप एंड सोशल क्लास" (1949) में नागरिकता को परिभाषित किया है:
"नागरिकता एक स्थिति है जिसमें व्यक्ति को समाज के सदस्य के रूप में मान्यता प्राप्त होती है और उसे समाज के संसाधनों और अधिकारों का उपयोग करने का अधिकार प्राप्त होता है।"
मार्शल ने नागरिकता के तीन मुख्य घटकों की पहचान की:
1. *नागरिक अधिकार* (सिविल राइट्स): व्यक्तिगत स्वतंत्रता, समानता और न्याय के अधिकार।
2. *राजनीतिक अधिकार* (पॉलिटिकल राइट्स): मतदान, चुनाव लड़ने और राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने के अधिकार।
3. *सामाजिक अधिकार* (सोशल राइट्स): शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा के अधिकार।
मार्शल का सिद्धांत यह है कि नागरिकता के ये तीन घटक एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और एक दूसरे को मजबूत बनाते हैं। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि नागरिकता का विकास एक ऐतिहासिक प्रक्रिया है जो समय के साथ बदलती रहती है।
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