अध्याय-1.2 : द्विध्रुवीयता का अंत
समाजवादी सोवियत गणराज्य(Union of Soviet Socialist Republics-USSR) लेनिन के नेतृत्व में रूस में हुई बोल्शेविक/साम्यवादी क्रांति 1917 के बाद 1922 में अस्तित्व में आया।
यह क्रांति पूंजीवादी व्यवस्था के विरोध में हुई थी और समाजवादी के आदर्शों व समतामूलक समाज की जरूरत से प्रेरित थी।
यह क्रांति निजी संपत्ति की संस्था को समाप्त करने और समाज मे समानता स्थापित करने की सबसे बड़ी कोशिश थी।
सोवियत प्रणाली की विशेषताएं
सोवियत राजनीतिक प्रणाली की धुरी कम्युनिस्ट पार्टी थी।जिसमे किसी अन्य राजनीतिक दल या विपक्ष के लिए जगह नही था।
नियोजित अर्थव्यवस्था अर्थात सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था सरकार के पूर्ण नियंत्रण में थी।
दूसरी दुनिया के देशों का नेता था।
अमेरिका के अतिरिक्त विश्व के सभी देशों से इसकी अर्थव्यवस्था सबसे उन्नत थी।
विशाल ऊर्जा के स्रोत(प्राकृतिक गैस, खनिज तेल) खनिज संसाधन( लोहा, इस्पात) व अन्य मशीनरी उत्पाद उपलब्ध थे।
आवागमन और संचार के साधन बहुत उन्नत थे।
घरेलू उपभोक्ता उद्योग बहुत उन्नत था। सुई से लेकर हवाई जहाज तक सभी चीजों का यहां उत्पादन होता था। हलाकि यहां उत्पादित बस्तुओं की गुणवत्ता पश्चिमी देशों की तुलना में कम थी।
नागरिकों को न्यूनतम जीवन स्तर की गारंटी थी।
सरकार बुनियादी जरूरत की चीजों जैसे स्वास्थ्य शिक्षा लोक कल्याण की सुविधाएं रियायती दर पर उपलब्ध करायी थी।
बेरोजगारी नही थी।
उत्पादन के साधनों पर राज्य का स्वामित्व था।
सोवियत प्रणाली की कमियां
नौकरशाही का शिंकजा कसता जा करता चला गया।
यह प्रणाली सत्तावादी होती गई, यहां जनता की कोई नही सुनता था।जिससे नागरिकों का जीवन कठिन होता चला गया।
नागरिकों को वाक-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नही थी। लोग सरकार के खिलाफ कुछ भी बोलने से डरते थे। वे प्रायः अपनी अभिव्यक्ति चुटकुला और कार्टूनों के माध्यम से करते थे।
सोवियत संघ की ज्यादातर संस्थाओं में सुधार की जरुरत थी।
एक दल(कम्युनिस्ट पार्टी) का निरंकुश शासन था। कम्युनिस्ट पार्टी जनता के प्रति जबाबदेह नही थी।
सोवियत संघ 15 देशों से मिलकर बना था परंतु रूस का सभी मामलों में प्रभुत्व था। बाकी 14 देशों की जनता अक्सर उपेक्षित और दमित महसूस करती थी।
हथियारों की होड़ के कारण अपने संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा सैन्य साज-सामानों के लिए खर्च करता था।जिसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी।
तकनीकी स्तर पर पश्चिमी देशों से पिछड़ गया था। उत्पादित बस्तुओं की गुणवत्ता निम्न हो गयी थी।
जनता की आर्थिक आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर पा रहा था।
1979 में अफगानिस्तान के मामले में हस्तक्षेप किया जिससे इसकी आर्थिक स्थिति और भी कमजोर हो गयी।
उपभोक्ता वस्तुओं की कमी हो गई थी। खाद्यान्नों का आयात करना पड़ रहा था।
1970 के दशक के अंतिम वर्षो में यह व्यवस्था लड़खड़ा रही थी और अंत में ठहर सी गयी।
गोर्बाच्योव के सुधार को समझाइएसोवियत संघ ने अपने संसाधनों का अधिकांश भाग परमाणु हथियारों और सैन्य साज सामानों पर खर्च किया ।
अपने संसाधनों का एक बड़ा भाग पूर्वी यूरोप के अपने पिछलग्गू देशों के विकास पर खर्च किए ताकि वे सोवियत संघ के नियंत्रण में बनी रहे । इससे सोवियत संघ पर गहरा आर्थिक दबाव पड़ा जिसका सोवियत व्यवस्था प्रबंधन नहीं कर सकी।
इसी के साथ सोवियत संघ के आम नागरिकों को जब इस बात की जानकारी हुई कि उनका जीवन स्तर यूरोपीय देशों की तुलना में बहुत निम्न है तो लोगों को मनोवैज्ञानिक रूप से धक्का लगा।
सोवियत संघ की प्रशासनिक और राजनीतिक व्यवस्था पूर्णरूप से गतिरुद्ध हो चुकी थी । सोवियत संघ पर कम्युनिस्ट पार्टी का 1917 से शासन था लेकिन यह पार्टी जनता के प्रति जवाबदेह नहीं थी ।
प्रशासन में भ्रष्टाचार चरम पर था। व्यवस्था सुधारने की क्षमता शासन में नहीं रह गयी थी।
देश की विशालता के बावजूद सत्ता केंद्रीकृत थी।
इन सभी कारणों से आम जनता असंतुष्ट और अलग-थलग हो गई थी।
इससे भी बुरी बात यह थी कि पार्टी के अधिकारियों को आम नागरिकों से ज्यादा विशेषाधिकार प्राप्त थे। इससे लोगों का सत्ता के प्रति मोहभंग हो गया और सरकार का जनाधार खिसकता चला गया ।
ग्लॉसनास्ट व पेरिस्ट्रोयका का क्या अर्थ है ?
मार्च 1985 में सोवियत संघ में गोर्बाच्योव राष्ट्रपति बने।
गोर्बाच्योव ने इन समस्याओं के समाधान का जनता से वादा किया।उन्होंने अपनी नई सोच प्रस्तुत किया ।
उन्होंने लोगों की स्वतंत्रता को बहाल किया तथा अर्थव्यवस्था का नव-निर्माण किया ।
ग्लॉसनास्ट का अर्थ है ‘खुलेपन की नीति’ और पेरिस्ट्रोयका का अर्थ है ‘आर्थिक नव निर्माण’ ।
इस प्रकार लेनिन के समय से चली आ रही वह व्यवस्था समाप्त हो गई जिसमें लोगों को मूकबधिर पशुओं की तरह बना दिया गया था उन्हें किसी भी प्रकार की आजादी नही थी।
अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र को प्रवेश दिया गया।गोर्बाच्योव की दृष्टि में टूटते हुए समाजवादी राज्य को बचाने के लिए यही रास्ता सबसे उपयुक्त था।
लेकिन गोर्बाच्योव के सुधार लागू होते ही लोगों को वाक-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिली जिससे लोग सरकार की गलत नीतियों का खुलकर विरोध करने लगे।
लोगों की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं का ज्वार फूट पड़ा जो सोवियत समाजवादी व्यवस्था को बहा ले गया ।
सोवियत संघ के घटक देशों में राष्ट्रीयता और संप्रभुता के भाव का उदय हुआ जो धीरे-धीरे सोवियत संघ के विघटन का रास्ता तैयार कर दिया ।
सोवियत संघ के विघटन के कारण
सोवियत संघ की राजनीतिक और आर्थिक संस्थाओं मैं अंदरूनी कमजोरी के कारण लोगों की आकांक्षाओं को पूरा नही कर सकी।यही सोवियत संघ के पतन का मुख्य कारण बना।
कई सालों तक अर्थव्यवस्था गतिरुद्ध रही।इसमें उपभोक्ता बस्तुओं की कमी हो गयी थी।
सोवियत संघ की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अपनी राजव्यवस्था को शक की नजर से देखता था। उससे खुलेआम सवाल खड़े करने शुरू किए।
सोवियत संघ ने अपने संसाधनों का अधिकांश भाग परमाणु हथियार और अन्य सैन्य साजो-सामान पर लगाया।
उसने अपने संसाधन पूर्वी यूरोप के अपने पिछलग्गू देशों के विकास पर भी खर्च किये ताकि वे सोवियत संघ के नियंत्रण में रहें।
इससे सोवियत संघ पर गहरा आर्थिक दबाव बना और सोवियत व्यवस्था इसका सामना नही कर सकी।
पश्चिमी देशों की तरक्की के बारे में सोवियत संघ के नागरिकों की जानकारी बढ़ी।इन्हें सालों तक यह बताया जाता रहा कि सोवियत राजव्यवस्था पश्चिम के पूंजीवाद से बेहतर है लेकिन सच्चाई यह थी कि सोवियत संघ पिछड़ चुका था। जब लोगों को इस बात का पता चला तो उनको मनोवैज्ञानिक रूप से धक्का लगा।
यहां कम्युनिस्ट पार्टी का निरंकुश शासन था जो जनता के प्रति जवाबदेह नही थी।
कम्युनिस्ट पार्टी में भ्रष्टाचार चरम पर था, प्रशासन गतिरुद्ध हो गया था,इसमें गलतियों को सुधारने की क्षमता समाप्त हो गयी थी।
पार्टी के लोगों को विशेष अधिकार प्राप्त थे जिससे जनता उन्हें अपने से जोड़ कर नहीं देख पा रही थी।
देश की विशालता के बावजूद सत्ता केन्द्रीकृत थी।सोवियत संघ में नौकरशाही का शिकंजा था।
मिखाइल गोर्बाचेव के सुधारों का विपरीत प्रभाव पड़ा। पार्टी के भीतर और बाहर दोनों ही तरफ उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा।आम जनता इतनी धीमी गति से सुधार से संतुष्ट नही थे जबकि पार्टी के लोग अपने विशेषाधिकारों को छिनते देख गोर्बाचेव के विरोध में आ गए।
राष्ट्रवादी भावना और संप्रभुता की इच्छा का उभार। वहां के लोगों को यह पता चल गया था कि सोवियत संघ टूट रहा है।राष्ट्रीयता और संप्रभुता के भावों का उभार सोवियत संघ के विघटन का अंतिम और सर्वाधिक तात्कालिक कारण सिद्ध हुआ।
सोवियत संघ का विघटन
सर्वप्रथम 1988 में लिथुआनिया में स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत हुई। आगे चलकर यह आंदोलन इस्टोनिया और लातविया में भी पहुंच गया।
सोवियत गणराज्यों में सबसे पहले लिथुआनिया द्वारा स्वतंत्रता की घोषणा की गई (1990)।
लिथुआनिया लाटविया एस्टोनिया को बाल्टिक देश कहा जाता है ये भी पूर्व सोवियत संघ का हिस्सा थे
सन 1991 में रूस के प्रथम नवनिर्वाचित राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन के नेतृत्व में रूस यूक्रेन व बेलारूस ने सोवियत संघ की समाप्ति की घोषणा कर दी।
सोवियत संघ से अलग हुए 12 स्वतंत्र राष्ट्रों ने मिलकर CIS (Commonwealth of Independent States) बनाया। ये 12 देश निम्न थे- रूस, बेलारूस, यूक्रेन, मॉलदाविया, जार्जिया, अर्मेनिया, अजरबैजान, तुर्कमेनिस्ता, उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान और किर्गिस्तान ।
रूस को सोवियत संघ का उत्तराधिकारी बनाया गया।
उत्तराधिकार के रूप में रूस को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता, परमाणु सम्पन्न देश का दर्जा, सोवियत संघ द्वारा की गई अंतर्राष्ट्रीय संधियों व करारों को निभाने की जिम्मेदारी प्राप्त हुई।
बोरिस येल्तसिन रूस के प्रथम राष्ट्रपति बने। येल्तसिन को साम्यवाद से पूंजीवाद की ओर संक्रमण के दौरान रूसी लोगों को हुए कष्ट का जिम्मेदार भी माना गया।
सोवियत संघ के विघटन के परिणाम
सोवियत संघ के विघटन ने विश्व राजनीतिक परिदृश्य को परिवर्तित कर दिया।महाशक्ति के रूप में सोवियत संघ का अवसान हो गया।
अब एक मात्र महाशक्ति के रूप में अमेरिका रह गया।पूरा विश्व एकध्रुवीय (Unipolar) हो गया। अमेरिका का पूरी दुनिया में वर्चस्व स्थापित हो गया।
शीत युद्ध और हथियारों की होड़ समाप्त हो गयी।
पूर्वी यूरोपीय देशों में साम्यवाद का अवसान हो गया और उसके स्थान पर बहुदलीय लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की स्थापना हुई।
सोवियत संघ के विघटन से तृतीय विश्व के देशों को गंभीर आघात का सामना करना पड़ा।क्योंकि इन देशों को सोवियत संघ से आर्थिक सैनिक व तकनीकी सहायता प्राप्त होती थी।अब विघटित गणराज्यों में इतनी क्षमता नही रही कि वे इनकी सहायता कर सकें।इसी संदर्भ में तृतीय विश्व को नव उपनिवेशवाद के खतरे का सामना करना पड़ा।
विश्व में बाजार अर्थव्यवस्था को बल मिला।
सोवियत संघ के विघटन से यह बात भी स्पष्ट हो गयी कि लंबे समय तक दमन और नागरिक स्वतंत्रता का अपहरण कर शासन नही चलाया जा सकता। इस तरह से लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बढ़ावा मिला।
अंतर्राष्ट्रीय पटल पर नए देशों का उदय हुआ।
पूर्व रूसी गणराज्यों में समाजवाद से पूंजीवाद में परिवर्तन आसान नहीं था।" इस कथन की विवेचना कीजिए। या
शॉक थेरेपी का अर्थ समझाते हुए उसके प्रभावों पर प्रकाश डालिए।
सोवियत संघ के विघटन के पश्चात रूस, पूर्वी यूरोप व मध्य एशिया के देशों ने विश्व बैंक एवं अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के दबाव में आकर साम्यवाद से पूंजीवादी व्यवस्था में परिवर्तित होने का निर्णय लिया, जिसके लिए उन्होंने शॉक थेरेपी मॉडल का सहारा लिया । परंतु यह मार्ग आसान नहीं था, साम्यवादी व्यवस्था का लोकतांत्रिक पूंजीवादी व्यवस्था में यह संक्रमण कष्टप्रद मार्ग से गुजरा।आइये जानते हैं, क्या है शॉक थेरेपी और क्या हैं इसके दुष्परिणाम ?
शॉक थेरेपी का अर्थ
सोवियत संघ के पतन के बाद रूस, पूर्वी यूरोप व मध्य एशिया के देशों में साम्यवाद से पूंजीवाद की ओर संक्रमण के लिए एक विशेष मॉडल को अपनाया गया जिसे शॉक थेरेपी (आघात पहुंचा कर उपचार करना) कहा जाता है। विश्व बैंक एवं अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMG) के द्वारा इस मॉडल को प्रस्तुत किया गया । शॉक थेरेपी में निजी स्वामित्व, राज्य संपदा के निजीकरण और व्यवसायिक स्वामित्व के ढांचे को अपनाना, पूंजीवादी पद्धति से कृषि करना तथा मुक्त व्यापार को पूर्ण रुप से अपनाना शामिल है। वित्तीय खुलेपन तथा मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयता भी महत्वपूर्ण मानी गई।इसे ही एलपीजी अर्थात उदारीकरण निजीकरण और वैश्वीकरण की नीति भी कहा जाता है।भारत में भी इसका प्रभाव 1991के बाद देखा गया।1991में सोवियत संघ के पतन के बाद दूसरी दुनिया के देशों की व्यवस्था में अमूलचूल परिवर्तन देखने को मिले।इस नई व्यवस्था को उत्तर-साम्यवादी व्यवस्था का नाम दिया गया।
उत्तर-साम्यवादी व्यवस्था की विशेषताएं-
1- राजनीति अर्थव्यवस्था व समाज के ऊपर साम्यवादी पार्टी के नियंत्रण का अंत हो गया।
2- बहुलवादी समाज का उदय हुआ।अब लोगों को अपने हितों की रक्षा करने या उनके संवर्धन करने की अनुमति मिल गयी।
3- आर्थिक प्रतिबंध हटने लगे जिससे बाजार खुला। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को प्रोत्साहित किया गया। राज्य और बाजार परस्पर मित्र समझे जाने लगे।
4- नई संस्थाए स्थापित होने लगी ( जैसे - राजनीतिक दल व दबाव-हित समूह) जिन्होंने राजनीतिक प्रक्रिया में अपनी भागीदारी सुनिश्चित की।
5- खुले और निष्पक्ष चुनाव का होना संभव हो गया। इसीलिए गैर कम्युनिस्ट संगठन सत्ताधारी हो गए।
6- प्रेस व न्यायपालिका की स्वतंत्रता बहाल हो गई।
7- राज्यों की गृह व विदेश नीतियों में अधिक बदलाव आया।
8- लोगों को विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त हुई।
शॉक थेरेपी के नकारात्मक परिणाम
शॉक थेरेपी के नकारात्मक प्रभाव निम्न हैं-
1-1990 में अपनाई गई शॉक थेरेपी लोगों को उपभोग के उस आनंदलोक तक नहीं ले जा सकी जिसका उनसे वादा किया गया था।
2- शॉक थेरेपी के कारण साम्यवादी देशों की अर्थव्यवस्था नष्ट हो गई ।
3- रूस में संपूर्ण औद्योगिक ढांचा नष्ट हो गया।
4- लगभग 90% उद्योगों को कंपनियों एवं निजी हाथों को औने पौने दामों में बेंच दिया गया। इसे इतिहास की सबसे बड़ी गैराज सेल कहा गया।
5- शॉक थेरेपी के कारण रूसी मुद्रा रूबल के मूल्य में नाटकी ढंग से गिरावट आई ।
6-सामूहिक या सहकारी खेती की प्रणाली समाप्त होने से लोगों को दी जाने वाली खाद्य सुरक्षा भी समाप्त हो गई।
7- सरकारी मदद को बंद करने के कारण अधिकांश लोग गरीब हो गए।
8- माफिया वर्ग ने अधिकांश गतिविधियों को अपने नियंत्रण में ले लिया।
9- शॉक थेरेपी के कारण धनी एवं निर्धन वर्ग में आर्थिक असमानता बहुत बढ़ गई ।
10- शॉक थेरेपी के कारण इन देशों में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ गई और गृह युद्ध जैसी स्थिति विद्यमान हो गई।
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संघर्ष व तनाव के क्षेत्र
पूर्व सोवियत संघ के अधिकांश गणराज्य संघर्ष की आशंका वाले क्षेत्र है। इन देशों में बाहरी ताकतों की दखलंदाजी भी बढ़ी है। रूस के दो गणराज्यों चेचन्या और दागिस्तान में हिंसक अलगाववादी आन्दोलन चले। चेकोस्लोवाकिया दो भागों चेक तथा स्लोवाकिया में बंट गया।
बाल्कन क्षेत्र
बाल्कन गणराज्य युगोस्लाविया गृहयुद्ध के कारण कई प्रान्तों में बँट गया। जिसमें शामिल बोस्निया हर्जेगोविना, स्लोवेनिया तथा क्रोएशिया ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया।
बाल्टिक क्षेत्र
वाल्टिक क्षेत्र के लिथुआनिया ने मार्च 1990 में अपने आप को स्वतन्त्र घोषित किया। एस्टोनिया, लताविया और लिथुआनिया 1991 संयुक्त राष्ट्रसंघ के सदस्य वने। 2004 में नाटो में शामिल हुए।
मध्य एशिया
मध्य एशिया के तजाकिस्तान में 10 वर्षों तक यानी 2001 तक गृहयुद्ध चला। अजरबेजान, अर्मेनिया, यूक्रेन, किरगिझस्तान, जार्जिया में भी गृहयुद्ध की स्थिति हैं।
मध्य एशियाई गणराज्यों में पेट्रोल और प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार हैं। इसी कारण से यह क्षेत्र बाहरी ताकतों और तेल कंपनियों की प्रतिस्पर्धा का अखाड़ा भी बन गया है।
भारत सोवियत संघ संबंध
शीत युद्ध काल में भारत सोवियत संघ के संबंध बहुत अच्छे रहे,इसीलिए कुछ आलोचक भारत को सोवियत गुट का देश मानते थे।
आर्थिक सहयोग- भिलाई बोकारो विशाखापत्तनम के इस्पात संयंत्र की स्थापना में सहयोग। भेल की स्थापना में सहयोग।रुपये में व्यापारिक लेनदेन को स्वीकृति दी।
राजनीति के क्षेत्र में सहयोग- कश्मीर के मुद्दे पर सदैव समर्थन। भारत-पाक युद्ध 1971 के समय सहयोग।
रक्षा क्षेत्र में सहयोग- सैन्यसाज सामानों का सहयोग।संयुक्त रूप से आयुधों का निर्माण।
अंतरिक्ष कार्यक्रम में सहयोग- क्रायोजेनिक इंजन बनाने में सहयोग।
सांस्कृतिक सहयोग- हिंदी फिल्में सोवियत संघ में बहुत लोकप्रिय।
पूर्व साम्यवादी देश और भारत
पूर्व साम्यवादी देशों के साथ भारत के संबंध अच्छे है, रूस के साथ विशेष रूप से प्रगाढ़ है।
दोनों का सपना बहुधवीय विश्व का है।
दोनों देश सहअस्तित्व, सामूहिक सुरक्षा, क्षेत्रीय सम्प्रभुता, स्वतन्त्र विदेश नीति,अंतर्राष्ट्रीय झगड़ों का वार्ता द्वारा हल, संयुक्त राष्ट्रसंघ के सुदृढ़ीकरण तथा लोकतंत्र में विश्वास रखते है।
2001 में भारत और रूस के मध्य 80 द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर हुए।
भारत रूसी हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा खरीददार है।
रूस से तेल का आयात होता है।
परमाण्विक योजना तथा अंतरिक्ष योजना में रूसी मदद। क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी में रूस का सहयोग प्राप्त है।
कजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के साथ उर्जा आयात बढ़ाने की कोशिश हो रही है।
गोवा में दिसम्बर 2016 में हुए ब्रिक्स (BRICS) सम्मलेन के दौरान रूस-भारत के बीच हुए 17 वें वार्षिक सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतीन के बीच रक्षा, परमाणु उर्जा, अंतरिक्ष अभियान समेत आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने एवं उनके लक्ष्यों की प्राप्ति पर बल दिया गया।
पाठ 2:- दो ध्रुवीता का अंत
एक अंक वाले प्रश्न :-
1. द्विधुवीयता का अर्थ तताएँ।
उत्तर :- विश्व में सत्ता के दो केन्द्रों (ध्रुवों) का होना। संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संध।
2. बर्लिन की दीवार .............. का प्रतीक थी।
उत्तर :- शीतयुद्ध
3. समाजवादी सोवियत गणराज्य कब अस्तित्व में आया ?
उत्तर :- 1922
4. दूसरी दुनिया किसे कहा जाता है?
उत्तर :- पूर्वी यूरोप के समाजवादी खेमे के देशों को।
5. CIS का पूरा नाम लिखे।
उत्तर :- स्वतन्त्र राज्यों का राष्ट्रकुल-कॉमनवेल्थ ऑफ इंडिपेनडेंट स्टेट्स
6. बर्लिन की दीवार कब गिराई गई?
उत्तर :- 9 नवम्बर 1989
7. USSR का उत्तराधिकारी किसे बनाया गया।
उत्तर :- रूस
8. सोवियत संघ में सुधारों की किस नेता ने शुरूआत की।
उत्तर :- मिखाइल गोर्बाचेव
9. चेकोस्लोवाकिया किन दो भागों में टूटा था?
उत्तर :- चेक तथा स्लोवाकिया
10. सोवियत संघ द्वारा नाटो के विरोध में कब व कौन सा सैन्य गठबंधन बनाया था?
उत्तर :- वारसा पैक्ट, 1955
11. सर्वप्रथम सोवियत संघ से अलग होने वाले गणराज्यों के नाम लिखे।
उत्तर :- लिथुआनिया, लातविया व एस्टोनिया।
12. रूस के किन दो गणराज्यों में अलगाववादी आन्दोलन चले।
उत्तर :- चेचन्या, दागिस्तान।
13. सोवियत राजनीतिक प्रणाली .............की विचारधारा पर आधारित थी।
उत्तर :- समाजवाद।
14. सोवियत संघ कितने गणराज्यों को मिलकर बना था ?
उत्तर :- 15।
15. वर्तमान राजनैतिक परिपेक्ष्य को ध्यान में रखते हुए बताइए कि विश्व कितने ध्रुवीय है ?
उत्तर :- बहुध्रुवीय।
16. USSR कब अस्तित्व में आया?
उत्तर :- 1917 की समाजवादी क्रांति के वाद 1922 में USSR अस्तित्व में आया।
17. सोवियत संघ की समाप्ति की घोषणा सर्वप्रथम किन गणराज्यों ने की ?
उत्तर :- बोरिस येल्तसिन के नेतृत्व में रूस, यूक्रेन व बेलारूस।
18. 1991 में यूगोस्लाविया के टूटने से बने दो राष्ट्रों का नाम लिखें।
उत्तर :- बोसनिया, हर्जेगोबिना
19. सोवियत व्यवस्था के निर्माताओं ने निम्न से किसको महत्व नहीं दिया।
क) निजी संपत्ति की समाप्ति
ख) समानता के सिद्धान्त पर समाज का निर्माण।
ग) विरोधी दल का अस्तित्व नहीं।
घ) अर्थव्यवस्था पर राज्य का कोई नियन्त्रण नहीं।
उत्तर :- (घ)
20. सोवियत प्रणाली की जनहित के पक्ष में एक विशेषता का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :- सभी नागरिकों के लिए न्यूनतम जीवन स्तर निश्चित था।
सही विकल्प का चयन कीजिए :-
21. NATO के जवाब में सोवियत संघ ने सैन्य संधि की
1) सीटो 2) सेन्टो 3) सार्क 4) वारसा
उत्तर :- वारसा
22. सोवियत संघ के विघटन के समय कम्युनिष्ट पार्टी के महासचिव थे।
क) बोरिस येल्तसिन ख) निकिता खुश्चेव
ग) मिखाइल गोर्बाचेव घ) ब्लादिमीर पुतिन
उत्तर :- मिखाइल गोर्बाचेव।
23. सोवियत संघ में शामिल गणराज्यों की संख्या थी।
i) 10 ii) 15 iii) 20 . iv) 18
उत्तर :- 15
दो अंकीय प्रश्न :-
1. शॉक थेरेपी से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :- आघात पहुँचाकर उपचार करना। साम्यवाद से पूंजीवाद की ओर संक्रमण का विशेष मॉडल।
2. सोवियत संघ से अलग हुए किन्हीं दो मध्य एशियाई देशों के नाम बताएँ।
उत्तर :- ताजिकिस्तान,उज्बेकिस्तान।
3. ताजिकिस्तान में हुआ गृहयुद्ध कितने वर्षों तक चलता रहा और यह गृह युद्ध कब समाप्त हुआ।
उत्तर :- 10 वर्षों तक, 2001 में।
4. कालक्रमानुसार लिखे अफगान संकट, रूसी क्रांति, बर्लिन की दीवार का गिरना, सोवियत संघ का विघटन।
उत्तर :- रूसी क्रांति, अफगान संकट, बर्लिन की दीवार का गिरना, सोवियत संघ का विघटन।
5. सुमेलित करें
शॉक थेरेपी - सोवियत संघ का उत्तराधिकारी।
रूस - सैन्य समझौता
बोरिस येल्तसिन - आर्थिक मॉडल
वारसा - रूस के राष्ट्रपति
उत्तर :- शॉक थेरेपी - आर्थिक मॉडल
रूस - सोवियत संघ का उत्तराधिकारी
बोरिस येल्तसिन - रूस के राष्ट्रपति
वारसा - सैन्य समझौता
6. इतिहास की सबसे बड़ी गराज सेल किसे और क्यों कहा जाता है?
उत्तर :- शॉक थेरेपी मॉडल को अपनाने पर रूस के 90 प्रतिशत उद्योगों को निजी हाथों या कंपनियों को औने-पौने दामों पर बेचा गया। यही इतिहास की बड़ी गराज सेल।
7. शॉक थेरेपी के दो परिणाम बताओ।
उत्तर :- (i) रूसी मुद्रा रूबल के मूल्य में गिरावट।
(ii) पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था चरमरा गई।
चार अंकीय प्रश्न :-
1. साम्यवादी सोवियत अर्थव्यवस्था तथा पूँजीवादी अमेरिकी अर्थव्यवस्था में चार अंतर बताएँ।
उत्तर :- • सोवियत अर्थव्यवस्था
(i) राज्य द्वारा पूर्ण रूपेण नियंत्रित
(ii) योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था
(iii) व्यक्तिगत पूंजी का अस्तित्व नहीं
(iv) समाजवादी आदर्शों से प्रेरित
(v) उत्पादन के साधनों पर राज्य का स्वामित्व।
• अमेरिका की अर्थव्यवस्था
(i) राज्य का न्यूनतम हस्तक्षेप
(ii) स्वतंत्र आर्थिक प्रतियोगिता पर आधारित
(ii) व्यक्तिगत पूंजी की महत्ता।
(iv) अधिकतम लाभ का पूंजीवादी सिद्धांत।
(v) उत्पादन के साधनों पर बाजार का नियंत्रण।
2. गोर्बाचेव तो रोग का निदान ठीक कर रहे थे व सुधारों का प्रयास भी ठीक था, फिर भी सोवियत संघ का विघटन क्यों हुआ?
उत्तर :- गोर्बाचेव ने लोगों के आक्रोश को कम करने व अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए प्रशासनिक ढांचे में ढील देने का निश्चय किया। परंतु व्यवस्था में ढील देते ही नागरिकों की अपेक्षाओं का ज्वार उमड़ पड़ा। जिस पर काबू पाना कठिन हो गया। कुछ आलोचकों के अनुसार गोर्बाचेव की कार्य पद्धति तीव्र नहीं थी। एक बार स्वतंत्रता का स्वाद चखने के बाद जनता ने साम्यवाद की और लौटने से इंकार कर दिया।
3. भारत जैसे देश के लिए सोवियत संघ के विघटन का परिणाम क्या हुआ?
उत्तर :- भारत जैसे विकासशील देशों में सावियत संघ के विघटन के परिणाम -
(i) विकासशील देशों की घरेलु राजनीति में अमेरिका को हस्तक्षेप का अधिक अवसर मिल गया।
(ii) कम्यूनिस्ट विचारधारा को धक्का।
(iii) विश्व के महत्वपूर्ण संगठनों पर अमेरिकी प्रभुत्व (I.M.E, World Bank)
(iv) बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत व अन्य विकासशील देशों में अनियंत्रित प्रवेश की सुविधा।
4. क्या शॉक थेरेपी साम्यवाद से पूंजीवाद की ओर संक्रमण का सबसे बेहतर तरीका थी। तर्क दीजिए। (Imp.)
उत्तर :- नहीं, परिवर्तन तुरंत किए जाने की अपेक्षा धीरे-धीरे होने चाहिए थे। वहाँ की परिस्थितियाँ अचानक आघात सहन करने की नहीं थी।
5. गोर्बाचेव सोवियत व्यवस्था में सुधार क्यों चाहते थे ?
उत्तर :- गोर्वाचोव 1985 में कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव चुने गए जो बाद में सोवियत संघ के राष्ट्रपति बने जो कि निम्न कारणों से सोवियत व्यवस्था में सुधार चाहते थे:-
(i) सोवियत संघ में सूचना एवं तकनीकी विस्तार के लिए।
(ii) सोवियत अर्थव्यवस्था को अधिक प्रगतिशील बनाने के लिए।
(iii) प्रशासनिक व्यवस्था को अत्याधिक जवाबदेह बनाने के लिए।
(iv) सोवियत व्यवस्था को अत्याधिक लोकतांत्रिक बनाने के लिए।
(V) पश्चिम के साथ रिश्तों को सामान्य बनाने के लिए।
पाँच अंक वाले प्रश्न :-
1. रूसी मुद्रा के मूल्य में नाटकीय ढंग से गिरावट आयी। मुद्रा स्फीति इतनी ज्यादा बढ़ी कि लोगों की जमा पूंजी जाती रही। सामूहिक खेती की प्रणाली समाप्त हो चुकी थी। लोगों को अब खाद्यान्न की सुरक्षा मौजूद नहीं रही।
(i) रूसी मुद्रा का नाम क्या है।
(ii) सामूहिक खेती प्रणाली क्या होती है?
(iii) यहाँ किस थेरेपी के परिणाम बताये जा रहे हैं? उस थेरेपी का अर्थ वताये ?
उत्तर :- (i) रूबल।
(ii) भूमि पर राज्य का स्वामित्व व कृषि कार्य लोगों द्वारा सामूहिक रूप से राज्य के नियंत्रण में करना।
(iii) शॉक थेरेपी साम्यवाद से पूँजीबाद की ओर संक्रमण का विशेष मॉडल शॉक थेरेपी कहलाता है।
2. क्या आप मानते है कि सोवियत संघ के विघटन के बाद भारत को अपनी विदेश नीति बदल लेनी चाहिए तथा रूप जैसे परम्परागत मित्र की जगह अमेरिका से दोस्ती करने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए?
उत्तर :- 1.) अन्तराष्ट्रीय जगत में न तो कोई किसी का स्थायी शत्रु होता है और न ही स्थायी मित्र।वरन सभी को अपना-अपना राष्ट्रहित ही सर्वोपरि होता है।
अतः अंतरराष्ट्रीय बदलाव के कारण प्रत्येक देश के लिए अनिवार्य है कि वह अपने आपको बदलाव के अनुसार ढाल ले। भारत ने भी विश्व व्यवस्या में स्वयं को ढाला है। रूस के साथ भारत के संबंध मित्रवत एवं सहयोगात्मक है। पर अपने विकास के लिए परोक्ष रूप से अमरीकी नीतियों का समर्थन भी करना पड़ रहा है। भारत अपने संबंध अमरीका से मजबूत एवम् बेहतर बना रहा है। पर रूस के साथ भी पहले की भांति अच्छे संबंध बनाए रखे है।
3. द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात सोवियत संघ के विश्व शक्ति बनने के किन्ही छ कारणों को स्पष्ट करें।
उत्तर :- (i) पूर्वी यूरोप एवं सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था को सामूहिक रूप से द्वितीय विश्व का नाम दिया गया जो कि इसकी शक्ति का परिचायक था।
(ii) वारसा पैक्ट सैनिक गठबंधन का नियन्त्रण सोवियत के पास।
(iii) सोवियत अर्थव्यवस्था विश्व के विकसित अर्थव्यवस्थाओं में काफी आगे थी।
(iv) उन्नत संचार व्यवस्था, उर्जा संसाधन, तेल, लोहा, स्टील आदि का उन्नत भंडार होना एवं राष्ट्र के दूरस्थ हिस्सों पहुँच होना।
(v) उत्पादन में स्वनिर्भरता जिसमे पिन से लेकर कार का उत्पादन भी घरेलू बाजारों में किया जाता था।
द्वि-ध्रुवीय विश्व का एक ध्रुवीय विश्व में संक्रमण पर एक संक्षिप्त निबंध लिखिए। या
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