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The Evolution of Indian Citizenship: Insights from Part 2 of the Constitution

भारतीय संविधान भाग 2: नागरिकता और सामाजिक न्याय की दिशा भारत का संविधान, दुनिया के सबसे विस्तृत और समावेशी संविधानों में से एक है, जो न केवल राज्य की संरचना और प्रशासन के ढांचे को निर्धारित करता है, बल्कि नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को भी स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है। भारतीय संविधान का भाग 2 भारतीय नागरिकता से संबंधित है, जो एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के मूलभूत ताने-बाने को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नागरिकता की परिभाषा और महत्व संविधान का भाग 2 भारतीय नागरिकता को परिभाषित करता है, यह स्पष्ट करता है कि एक व्यक्ति को भारतीय नागरिकता कब और कैसे प्राप्त होती है, और किन परिस्थितियों में यह समाप्त हो सकती है। नागरिकता, किसी भी देश में व्यक्ति और राज्य के बीच एक संप्रभु संबंध को स्थापित करती है। यह एक व्यक्ति को अपने अधिकारों का दावा करने का अधिकार देती है और साथ ही राज्य के प्रति उसकी जिम्मेदारियों को भी स्पष्ट करती है। भारतीय संविधान में नागरिकता की प्राप्ति के विभिन्न आधार हैं, जैसे जन्म, वंश, और पंजीकरण के माध्यम से। यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति, जो भारत...

12th राजनीति विज्ञान अध्याय 1.4 : समकालीन दक्षिण एशिया

दक्षिण एशिया


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👉दक्षिण एशिया क्षेत्र की विशेषताओं का विवरण दीजिए।


दक्षिण एशिया क्षेत्र की विशेषताएँ-


दक्षिण एशिया एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ सद्भाव और शत्रुता, आशा और निराशा एवं पारस्परिक शंका व विश्वास साथ-साथ बसते हैं।


सामान्यतया भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश, नेपाल, भूटान, मालदीव एवं श्रीलंका को इंगित करने के लिए ‘दक्षिण एशिया’ पद का व्यवहार किया जाता है।


 इस क्षेत्र में कभी-कभी अफगानिस्तान एवं म्यानमार को भी शामिल किया जाता है।


उत्तर में विशाल हिमालय पर्वत श्रृंखला, दक्षिण में हिन्द-महासागर, पश्चिम में अरब सागर एवं पूर्व में बंगाल की खाड़ी से दक्षिण एशिया एक विशिष्ट प्राकृतिक क्षेत्र के रूप में नजर आता है।


दक्षिण एशिया विविधताओं से भरा-पूरा क्षेत्र है फिर भी भू-राजनीतिक धरातल पर यह एक क्षेत्र है।


दक्षिण एशिया क्षेत्र की भौगोलिक विशिष्टता ही इस उपमहाद्वीप क्षेत्र के भाषायी, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अनूठेपन के लिए जिम्मेदार है।



👉“दक्षिण एशिया के विभिन्न देशों में एक-सी राजनीतिक प्रणाली नहीं है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए। अथवा दक्षिण एशियाई देशों में पायी जाने वाली शासन प्रणालियों की व्याख्या कीजिए।



👉दक्षिण एशिया के विभिन्न देशों में एक-सी राजनीतिक प्रणाली नहीं है, यह निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट है-



दक्षिण एशिया के दो देशों भारत और श्रीलंका में ब्रिटेन से आजाद होने के बाद से ही लोकतान्त्रिक व्यवस्था सफलतापूर्वक स्थापित है।


नेपाल में सन् 2006 तक संवैधानिक राजतन्त्र था। अप्रैल 2006 में एक सफल जन-विद्रोह से यहाँ लोकतन्त्र की स्थापना हुई है।


पाकिस्तान और बंगलादेश में लोकतान्त्रिक एवं सैन्य दोनों प्रकार की शासन व्यवस्थाएँ परिवर्तित होती रही हैं। वर्तमान समय में दोनों देशों में लोकतान्त्रिक शासन-व्यवस्था स्थापित है।


भूटान 2008 से संवैधानिक राजतन्त्र बन गया है। राजा के नेतृत्व में भूटान बहुदलीय लोकतन्त्र के रूप में उभरा है।


द्वीपीय देश मालदीव में सन् 1968 तक सल्तनत शासन था। सन् 1968 में यह देश एक गणतन्त्र बना तथा यहाँ अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली अपनायी गयी। 2005 से मालदीव में बहुदलीय लोकतंत्र स्थापित हो गया है लेकिन मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी का वहां की राजनीति में वर्चस्व है।



👉“दक्षिण एशियाई देशों की जनता लोकतन्त्र की आकांक्षाओं में सहभागी है।” उक्त कथन की व्याख्या कीजिए।


दक्षिण एशिया में लोकतन्त्र का मिला-जुला रिकॉर्ड रहा है। इसके बावजूद इस क्षेत्र के देशों की जनता लोकतन्त्र की आकांक्षाओं में सहभागी है। 


इस क्षेत्र के पाँच बड़े देशों—भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश, नेपाल व श्रीलंका में हाल में किए सर्वेक्षण में यह बात स्पष्ट हुई है कि इन पाँच देशों में लोकतन्त्र को व्यापक जनसमर्थन प्राप्त है। 


इन देशों में प्रत्येक वर्ग एवं धर्म के आम नागरिक लोकतन्त्र को अच्छा मानते हैं तथा प्रतिनिधिमूलक लोकतन्त्र की संस्थाओं का समर्थन करते हैं। 


इन देशों के लोग शासन संचालन की किसी और प्रणाली की अपेक्षा लोकतन्त्र को वरीयता देते हैं और यह मानते हैं कि उनके देश के लिए लोकतन्त्र ही सर्वश्रेष्ठ प्रणाली हो सकती है।


 इस प्रकार कहा जा सकता है कि दक्षिण एशिया की जनता लोकतन्त्र को अन्य शासन प्रणालियों से अच्छा समझती है।


ये निष्कर्ष बड़े महत्वपूर्ण हैं क्योंकि पहले यह माना जाता था कि लोकतंत्र सिर्फ विश्व के धनी देशों में ही फल फूल सकता है।


इस प्रकार दक्षिण एशिया के लोकतंत्र के अनुभवों से लोकतंत्र की वैश्विक कल्पना का दायरा बढ़ा है।



पाकिस्तान



👉भारत की भांति पाकिस्तान में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत क्यों नहीं हो सकी जबकि दोनों ही देशों का इतिहास एक जैसा है?



पाकिस्तान में भारत की तरफ लोकतंत्र की जड़ें मजबूत नहीं हो सकी यद्यपि 1947 में पाकिस्तान के निर्माण के समय लोकतांत्रिक पद्धति में विश्वास जताया गया था परंतु शीघ्र ही इस प्रक्रिया में बाधा तब पहुंची जब 1958 में अय्यूब खां ने पाकिस्तान में सैनिक तानाशाही लागू कर दी। तब से लेकर वर्तमान समय तक पाकिस्तान में कभी लोकतंत्र सफलतापूर्वक कायम नहीं रह पाया। अयूब खान के बाद याहिया खान तथा फिर जिया-उल-हक ने पाकिस्तान में सैनिक तानाशाही को बनाए रखा। पाकिस्तान में लोकतंत्र को कुछ हद तक सफलता 1990 के दशक में मिलती है जब पहले बेनजीर भुट्टो इसके बाद नवाज शरीफ ने लोकतांत्रिक ढंग से चुनाव जीतकर अपनी सरकार बनाई। इन दोनों सरकारों के बनने से यह आशा बनने लगी थी कि पाकिस्तान अब लोकतंत्र के मार्ग पर बिना किसी बाधा के चलता रहेगा परंतु यह आशा ज्यादा समय तक कायम नहीं रह सकी क्योंकि अक्टूबर 1999 में पाकिस्तानी सेना के जनरल परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ सरकार को हटाकर सत्ता अपने हाथों में ले ली। 2007 में बेनजीर भुट्टो की एक चुनाव रैली में हत्या कर दी गई। इससे पाकिस्तान में लोकतंत्र की बहाली को एक जोरदार झटका लगा। हलाकि 2008 से लेकर आज तक पाकिस्तान में लोकतंत्र को स्थापित करने का प्रयास चल रहा है लेकिन इसकी सफलता पर अभी भी संदेह है। पाकिस्तानी राजनीतिक दलों एवं नेताओं पर यह दायित्व है कि वे अपने यहां लोकतांत्रिक जड़ों को और मजबूत करें। 



👉पाकिस्तान में लोकतंत्र की असफलता के लिए उत्तरदाई कारक 


पाकिस्तान में लोकतंत्र की असफलता के लिए निम्नलिखित कारण जम्मेदार हैं-


1- सेना का राजनीतिक हस्तक्षेप - पाकिस्तान में लोकतंत्र के मार्ग में सेना ने सदैव बाधा उत्पन्न की है।लेकिन इसके बावजूद भी लोग सैनिक शासन को पसंद करते हैं।उनको लगता है कि इससे देश की सुरक्षा खतरे में नही पड़ेगी।


2- धर्म सापेक्षवाद - लोकतंत्र धर्मनिरपेक्ष देशों में ही चल सकता है।धर्म सापेक्ष देशो में उदारवादी प्रवित्तियां नही उभर सकती। पाकिस्तान में धार्मिक कट्टरता ने लोकतंत्र को सफलतापूर्वक संचालित नही होने दिया।


3- पश्चिमी देशों के समर्थन का अभाव- पश्चिमी देशों ने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए पाकिस्तान में लोकतंत्र को सफल नहीं होने दिया।आश्चर्य की बात है कि अमेरिका जैसा लोकतांत्रिक देश भी अपने निजी स्वार्थों के कारण सैनिक शासकों का समर्थन किया।


4-धर्मगुरु और भूस्वामी- पाकिस्तानी समाज के अभिजात वर्ग हैं लेकिन सैनिक शासन को अपने लिए अधिक सुविधाजनक मानते हैं।


5- दरिद्रता व अज्ञानता - जनसाधारण गरीबी व अज्ञानता से पीड़ित हैं जो लोगतंत्र के महत्व को नही समझते।


6-आतंकवाद- राजनेताओं की तुलना में आतंकवादियों की लोकप्रियता अधिक होने के कारण सरकार को आम जनता का पर्याप्त सहयोग नहीं मिल पा रहा है जिसके कारण लोकतंत्र की जड़े मजबूत नही हो पा रही।


अर्थात सेना, कट्टरपंथी, आतंकवादी, भूस्वामी,और धर्मगुरु सभी कमजोर शासन ही देखना चाहते हैं जिससे कि उनकी मनमर्जी चल सके और आम जनता इससे अनभिज्ञ है।


👉पाकिस्तान में लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने हेतु सुझाव


1- पाकिस्तान में सेना की भूमिका को कम करना होगा, विशेषकर इसके राजनीतिक हतक्षेप पर नियंत्रण लगाना होगा।


2- पाकिस्तान में लोकतंत्र को सफल बनाने के लिए वहां बढ़ने वाले धार्मिक उन्माद पर नियंत्रण लगाना होगा।


भारत और पाकिस्तान के मध्य संघर्ष


दक्षिण एशिया में भारत की स्थिति केंद्रीय है और इस वजह से इनमें से अधिकांश संघर्षों का रिश्ता भारत से है।


इन संघर्षों में सबसे महत्वपूर्ण भारत और पाकिस्तान के बीच का संघर्ष है।


विभाजन के तुरंत बाद दोनों देश कश्मीर के मुद्दे को लेकर लड़ पड़े।


सन् 1947 के पूर्व पाकिस्तान भारत का ही हिस्सा था पर देश की आजादी के साथ भारत का विभाजन भी हो गया तथा विभाजन के कारण उत्पन्न समस्याओं से ही दोनों देशों में शत्रुता भी प्रारम्भ हो गयी।अब तक दोनों देशों के मध्य छोटे-बड़े कुल चार युद्ध हो चुके हैं, लेकिन सभी समस्याएं पूर्वत बनी हुयी हैं।


शत्रुता का उदभव व विकास


15 अगस्त 1947 तक सभी देशी रियासतें भारत या पाकिस्तान में विलय हो चुकी थी लेकिन तीन रियासतें अभी भी स्वतन्त्र थी।इन रियासतों के विलय में सबसे बड़ा अड़पेच कश्मीर को लेकर था क्योंकि कश्मीर के डोगरा राजा हरि सिंह न तो इसे पाकिस्तान में विलय करना चाहते थे और न ही भारत में।भारत इस मामले में चुप था लेकिन पाकिस्तान कश्मीर को हर हाल में पाना चाहता था।चूंकि उस समय कश्मीर का ज्यादातर व्यापार पाकिस्तान से ही होता था, जो की भौगोलिक रूप से सुविधाजनक था, इसलिए पाकिस्तान ने कश्मीर को वार्ता की टेबल पर लाने के लिए उस पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगा दिया। लेकिन इस प्रतिबन्ध का राजा हरिसिंह पर कोई प्रभाव नहीं पड़ते देख पाकिस्तान ने कश्मीर पर कबायली (किराये के आदिवासी सैनिक) आक्रमण करा दिया।कबायलियों ने कश्मीर में कत्लेआम शुरू कर दिए। कश्मीर की सुरक्षा के लिए राजा हरिसिंह ने भारत से सहायता मांगी।भारतीय नेता नेहरू और पटेल सहायता देने के पक्ष में थे लेकिन गवर्नर जनरल माउन्टबेटन अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों का हवाला देकर यह कहा की जब तक कश्मीर का भारत में विलय नहीं हो जाता तब तक हम कश्मीर की सहायता नहीं कर सकते। अतः मजबूर होकर कश्मीर के प्रधानमंत्री मेहरचंद महाजन ने इंस्ट्रूमेंट ऑफ अक्सेशन(विलय पत्र)पर हस्ताक्षर कर दिए।अतः शीघ्र ही भारतीय सेना हवाई मार्ग से कश्मीर भेजी गयी।भारतीय सेना को कश्मीर से कबायलियों को पीछे भगाने में सफलता मिल रही थी । कुछ और दिनों में भारतीय सेना कश्मीर को पाकिस्तान के कब्जे से पूर्णतया मुक्त करा पाती लेकिन इसी समय नेहरू जी मामले को यू एन ओ में ले गए। यू एन ओ मामले में हस्तक्षेप करके युद्ध विराम समझौता करा दिया। उस समय जितना भूभाग पाकिस्तान के कब्जे में था, आज तक पाकिस्तान के कब्जे में बना हुआ है जिसे पाकिस्तान आजाद कश्मीर कहता है तथा भारत पाक अधिकृत कश्मीर।


हलाकि इस मामले को सुलझाने के लिए UNO ने एक आयोग का गठन किया था जिसकी रिपोर्ट में यह प्रस्ताव था की पाकिस्तान कश्मीर से अपनी सेना को वापस ले तो वहाँ जनमत संग्रह कराया जायेगा लेकिन पाकिस्तान ने पाक अधिकृत कश्मीर से सेना वापस लेने से इनकार कर दिया क्योंकि उसको इस बात का भय था की शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में बहुसंख्यक मुस्लिम भारत के पक्ष में मत व्यक्त करेंगे जिससे उसकी पराजय निश्चित थी।


अतः पाकिस्तान की हठधर्मिता के कारण कश्मीर समस्या आज तक बनी हुयी है, जो भारत-पाक संबंधों में खटास का प्रमुख कारण है।


कश्मीर के सम्बन्ध में पाकिस्तान के तर्क


1- चूँकि भारत का विभाजन द्वि-राष्ट्र सिद्धांत के आधार पर हुआ था, अतः मुस्लिम बहुल कश्मीर पर पाकिस्तान का हक़ है।इसी आधार पर भारत ने जूनागढ़ व हैदराबाद का बल पूर्वक विलय किया था।


2- भौगोलिक रूप से कश्मीर पाकिस्तान के ज्यादा करीब है। स्वतंत्रता से पूर्व कश्मीर का ज्यादातर व्यापार पाकिस्तान वाले क्षेत्र से ही होता था।


3- बिना जनमत संग्रह के कश्मीर का भारत में विलय अवैध है।


4- कश्मीरी जनता आज भी भारत से आजाद होना चाहती है। वह भारतीय झंडे के नीचे नहीं रहना चाहती है।


भारत के तर्क


1- कश्मीर का भारत में विलय पूर्णतया वैधानिक है ।भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 में यह प्रावधान था कि किस रियासत को किसके साथ सामिल होना है यह रियासत के शासक को निर्णय लेना था और जब राजा हरीसिंह ने कश्मीर का भारत में विलय कर दिया है तो अब पाकिस्तान का कोई भी तर्क बेबुनियाद है।


2- द्वि-राष्ट्र का सिद्धांत पाकिस्तान की अपनी बुद्धि की उपज है, जिसे शासक मानने के लिए बाध्य नहीं होते।


3- जनमत संग्रह की पूर्व शर्त थी की पाकिस्तान कश्मीर से अपनी सेना वापस ले। जब उसने पहली शर्त मानने से इंकार कर दिया, तो अब जनमत संग्रह का राग अलापने का कोई औचित्य नहीं है।


4- जम्मू कश्मीर की निर्वाचित संविधान सभा ने विधिवत प्रस्ताव पारित करके कश्मीर के भारत में विलय को स्वीकार कर लिया है तथा कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग घोषित किया है।


कश्मीर समस्या के सन्दर्भ में भारत द्वारा की गयी गलतियाँ


1- नेहरू द्वारा जनमत संग्रह की बात स्वीकार करना एक बड़ी भूल थी क्योंकि न तो राजा हरि सिंह ऐसी कोई शर्त रखी थी और न ही जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन लोकप्रिय नेता शेख अब्दुल्ला ने ही ऐसी कोई माँग की थी।


2- मामले को UNO में भारत को नहीं ले जाना चाहिए था क्योंकि भारतीय सेना उस समय आगे बढ़ रही थी तथा पाक सेना बैकफुट पर थी।कुछ दिनों में पुरे कश्मीर में मेरा कब्ज़ा हो जाता।


3- भारत ने इस मामले को UN सुरक्षा परिषद में  चार्टर के गलत अनुच्छेद के तहत उठाया।मामले को चार्टर के अध्याय 7 के अनु. 39 के तहत उठाना चाहिए था जो शांति के उल्लंघन और आक्रमण की कारवाही से सम्बंधित है।यदि ऐसा होता तो पाकिस्तान को आक्रमणकारी घोषित किया जाता परन्तु भारत ने मामले को अध्याय 6 के अनु.35 के तहत उठाया जो विवादों के शांति पूर्ण निपटारे से सम्बंधित है।ऐसा करके भारत स्वयं विश्व को यह सन्देश दिया की मामला विवादित है।


4- भारत को युद्ध विराम समझौता तभी करना चाहिए था जब पुरे कश्मीर पर भारतीय सेना का कब्जा हो जाता क्योंकि उस समय भारतीय सेना जीत के करीब थी।


भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद के प्रमुख बिंदु


सियाचिन विवाद - सियाचिन उत्तरी कश्मीर में स्थित ग्लेशियर है जिसे  पाकिस्तान अपना बतलाता है तथा बीच बीच में अपने पर्वतारोही और सैनिक भेजता रहता है जिससे बीच-बीच में झड़पें होती रहती हैं इससे निपटने के लिए भारतीय सेना यहाँ ऑपरेशन मेघदूत चला रही है।यह विश्व का सबसे ऊँचा युद्ध स्थल माना जाता है।


हथियारों की होड़ (परमाणु हथियार)- पाकिस्तान लगातार भारत को युद्ध में पराजित करने के सपने देखता रहता है। इसके लिए चीन अमेरिका व अन्य देशों की मदद से लगातार सैन्यसाज सामानों का भंडारण करता रहता है।जब भारत ने 1974 में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया तो पाकिस्तान ने हाय-तौबा मचाया और कहा कि घास की रोटी खाएंगे लेकिन परमाणु बम अवश्य बनाएंगे।और पाकिस्तान ने ऐसा ही किया उसने अन्य देशों की मदद से परमाणु बम विकसित कर लिए।जब भारत ने मई 1998 में पोखरन-2 के तहत पांच परमाणु परीक्षण किए तो पाकिस्तान ने इसके जबाब में चगाई पहाड़ी पर 6 परमाणु परीक्षण किए।इस परीक्षण के बाद दोनों देशों के बीच अपरोध का सिद्धांत काम करने लगा है अर्थात अब दोनों देशों के बीच पूर्ण युद्ध की संभावना नहीं है।इसलिए लिए 13दिसंबर 2001 में संसद पर आतंकवादी हमले के बाद दोनों देशों की सेना कई महीनों तक मोर्चे पर आमने सामने थी लेकिन युद्ध नही हुआ।


पाक समर्थित आतंकवाद- भारत-पाक युद्ध 1965 तथा 1971 द्वारा यह साबित हो गया की आमने-सामने के युद्ध में भारत को पराजित नहीं किया जा सकता तो पाकिस्तान ने छदम् युद्ध(proxy war) का सहारा लिया, जिसका एक रूप आतंकवाद है।दोनों देशों के रिश्ते सामान्य नहीं हो पा रहे हैं इसका मुख्य कारण अतंकवाद है।अभी हाल ही में जब वार्ता का दौर प्रारम्भ हो ही रहा था की पठानकोट आतंकी हमला हो गया जिससे वार्ता को कुछ दिन के लिए टाल दिया गया है।


भारत सरकार का आरोप है कि पाकिस्तान सरकार ने लुके-छुपे ढंग से हिंसा की रणनीति जारी रखी है। वह कश्मीरी उग्रवादियों को हथियार, प्रशिक्षण और धन देता है तथा भारत पर आतंकवादी हमले के लिए उन्हें सुरक्षा प्रदान करता है।


भारत सरकार का यह मानना है कि पाकिस्तान ने 1985-95 की अवधि में खालिस्तान समर्थक उग्रवादियों को हथियार व गोला बारूद दिए थे।


पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस(ISI) पर बांग्लादेश और नेपाल के गुप्त ठिकानों से पूर्वोत्तर भारत मे भारत-विरोधी अभियानों में संलग्न का आरोप है।


पाकिस्तान का आरोप है कि भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी सिंध और बलूचिस्तान में अलगाववादी समस्या को भड़का रही है।


सिंधु नदी जल विवाद या नदी जल विवाद- पाकिस्तान में प्रवाहित नदियां सिंधु , झेलम, चेनाव, रावी, सतलज और व्यास उदगम के बाद पहले भारत में प्रवाहित होती हैं फिर पाकिस्तान में। अतः पानी के बटवारे को लेकर विवाद प्रारम्भ से ही था लेकिन विश्व बैंक की मध्यस्थता से1960 में सिंधु और उसकी सहायक नदियों के जल बटवारे से सम्बंधित समझौता हुआ।जिसके तहत सिंधु झेलम चेनाव के जल का आधे से अधिक भाग पर पाकिस्तान का घोषित किया गया जबकि रावी सतलज व्यास पर इसीप्रकार भारत के अधिकार को स्वीकार किया गया।लेकिन भारत जब भी सिंधु झेलम चेनाव पर कोई परियोजना स्थापित करने लगता है तो पाकिस्तान हाय तोबा मचाता है।ऐसी ही परियोजनाओं में किशनगंगा परियोजना,बगलिहार परियोजना,तुलबुल परियोजना तथा बुंजी परियोजना हैं।


सर क्रीक विवाद - भारत के पश्चिमी गुजरात और पाकिस्तान के सिंध प्रान्त का तटवर्ती दलदली उथला समुद्री क्षेत्र के बटवारे को लेकर विवाद है।चूँकि इस क्षेत्र का बटवारा सर क्रिक नामक अंग्रेज अधिकारी के नेतृत्व में हुआ था इस लिए इसे सर क्रिक विवाद कहा जाता है।चूँकि इस क्षेत्र में प्राकृतिक गैस और पेट्रोलियम के भण्डार होने की संभावना है इस लिए दोनों ही देश इस पर अपना दावा प्रस्तुत करते रहते हैं।सन् 1965 में इस मुद्दे को लेकर युद्ध भी हो चूका है लेकिन आजतक कोई समाधान नहीं निकाला जा सका है।


पाकिस्तान और चीन की नजदीकियां - पाकिस्तान पाक अधिकृत कश्मीर का लगभग 5000 वर्ग कि मी भाग चीन को दे रखा है। यह क्षेत्र सामरिक महत्त्व का है जो भारत के सुरक्षा हितों के प्रतिकूल है।चीन इस क्षेत्र से कराकोरम राजमार्ग बना लिया है जिसके माध्यम से पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को जोड़ने वाला गलियारा बना कर अरब सागर में अपनी उपस्थिति दर्ज करना चाहता है जोकि भारत के सामरिक हितों के प्रतिकूल है।


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बांग्लादेश और भारत


भारतीय आजादी के पूर्व बांग्लादेश भारत का ही हिस्सा था तथा भारत विभाजन के पश्चात् पूर्वी पाकिस्तान के रूप में पाकिस्तान का भाग बना। लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान द्वारा लगातार उपेक्षा किये जाने तथा अपने ऊपर उर्दू भाषा लादने के खिलाफ थे।पाकिस्तान के निर्माण के तुरंत बाद से ही यहां के लोगों ने बंगाली संस्कृति और भाषा के साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार के खिलाफ विरोध जताना शुरू कर दिए। इस क्षेत्र की जनता ने प्रशासन में न्यायोचित प्रतिनिधित्व तथा राजनीतिक सत्ता में समुचित हिस्सेदारी की मांग शुरू कर दी। पश्चिमी पाकिस्तान के प्रभुत्व के खिलाफ जन-संघर्ष का नेतृत्व शेख मुजीबुर्रहमान ने किया। उन्होंने पूर्वी क्षेत्र के लिए स्वायत्तता की मांग की।


शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व वाली पार्टी अवामी लीग को 1970 के चुनावों में पूर्वी पाकिस्तान की सभी सीटों पर विजय प्राप्त हुई। जबकि सम्पूर्ण पाकिस्तान के लिए प्रस्तावित संविधान सभा में बहुमत हासिल हो गया। लेकिन सरकार पर पश्चिमी पाकिस्तान के नेताओं का दबदबा था और सरकार ने इस सभा आहूत करने से इनकार कर दिया। शेख मुजीबुर्रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया। अतः पूर्वी पाकिस्तान अपने आप को स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में स्थापित करने हेतु पश्चिमी पाकिस्तान के विरुद्ध आंदोलन छेड़ दिया। अतः इस आंदोलन को समाप्त करने के लिए पाकिस्तान सरकार ने दमन चक्र प्रारम्भ कर दिया। जिससे लाखों की संख्या में शरणार्थी अपने जीवन के रक्षार्थ भारत में आने लगे। जब भारत पर शरणार्थियो का दबाव बढ़ने लगा तो भारत सरकार ने मामले में हस्तक्षेप किया। जिसके कारण भारत और पाकिस्तान के बीच सन् 1971 में युद्ध प्रारम्भ हो गया। इस युद्ध का परिणाम भारत के पक्ष में रहा। अतः भारत के सहयोग से सन् 1971 में बांग्लादेश के रूप में एक नए राष्ट्र का उदय हुआ।


बांग्लादेश ने अपना संविधान बना के अपने आपको धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक तथा समाजवादी देश घोषित किया। 1975 में संविधान में संशोधन करके संसदीय शासन प्रणाली की जगह अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली को अपनाया गया। अवामी लीग को छोड़कर अन्य पार्टियों को समाप्त कर दिया गया। जिसके कारण बांग्लादेश में तनाव व संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गयी। अतः सेना ने सरकार के खिलाफ बगावत कर दी। शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या हो जाती है और बांग्लादेश में सैन्य शासन लागू हो जाता है।पहले जनरल जियाउर्रहमान सत्ता सम्हालते हैं उनके बाद जनरल इरसाद।लेकिन जनता के दबाव के आगे सैन्य सरकार को झुकना पड़ता है और 1991 में बहुदलीय चुनावों पर आधारित प्रतिनिधिमूलक संसदीय लोकतंत्र स्थापित होता है तथा खालिदा जिया वहां की पहली महिला प्रधानमंत्री बनती हैं।


भारत-बांग्लादेश संबंध


चूँकि बांग्लादेश का उदय भारतीय सहयोग से ही हुआ था इसलिए भारत के साथ बांग्लादेश के सम्बन्ध प्रारंभिक चरण में मित्रतापूर्ण थे। बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान भारत का धन्यवाद प्रकट करने भारत आये। इसी अवसर पर भारत बांग्लादेश के बीच सन् 1972 में 25 वर्षीय मैत्री समझौता हुआ। जिसके तहत एक दूसरे पर आक्रमण तथा आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने की बात कही गयी। इसके साथ भारत ने बांग्लादेश के पुनर्निर्माण हेतु 25 करोड़ रुपया आर्थिक सहायता के तौर पर दिया। इसी प्रकार सन् 1974 में भारत और बांग्लादेश के बीच सीमा-समझौता हुआ। जिसके तहत दाहग्राम तथा अमरकोट पर बांग्लादेश के अधिकार को स्वीकार किया गया जबकि बेरुबारी पर भारत के अधिकार को मान्यता दी गयी।


लेकिन ये मित्रतापूर्ण सम्बन्ध ज्यादा दिन तक नहीं रह सके। भारत और बांग्लादेश के मित्रतापूर्ण संबंधों के प्रतीक शेख मुजीबुर्रहमान (बांग्लादेश के राष्ट्रपिता) की कट्टरपंथी ताकतों द्वारा सन् 1975 में हत्या हो जाती है तथा जनरल जियाउर्रहमान के नेतृत्व में सैन्य शासन स्थापित होता है। इसके बाद भारत-बांग्लादेश के रिश्ते बिगड़ते चले जाते हैं तथा इनमें सुधार तभी होता है जब सन् 1996 में शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी शेख हसीना के नेतृत्व में लोकतांत्रिक सरकार का गठन होता है।


बांग्लादेश में मुख्य रूप से दो पार्टियां हैं


प्रथम अवामी लीग जिसकी मुखिया शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी शेख हसीना हैं। यह पार्टी धर्मनिरपेक्ष तथा भारत समर्थक है। जब-जब इस पार्टी की बांग्लादेश में सरकार बनती है तब-तब भारत के रिश्ते बांग्लादेश से सुधरने लगते हैं। 


दूसरी पार्टी है – बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी(BNP) जिसकी मुखिया जनरल जियाउर्रहमान की विधवा बेगम खालिदा जिया हैं। यह पार्टी कट्टरपंथी तथा पाकिस्तान समर्थक है। जब-जब बांग्लादेश में BNP की सरकार बनती है, तब-तब भारत बांग्लादेश के रिश्ते बिगड़ने लगते हैं। इसीलिए विशेषज्ञों ने भारत और बांग्लादेश के रिश्तों को युति-वियुति की संज्ञा देते हैं। हलाकि इस समय अवामी लीग की सरकार है।


भारत और बांग्लादेश के मध्य विवाद के प्रमुख बिंदु


1- सीमा विवाद


भारत और बांग्लादेश के बीच 4096 किमी लम्बी राजनीतिक सीमा है जहाँ पर मिजोरम मेघालय असम त्रिपुरा और पश्चिमी बंगाल में जगह-जगह सीमा विवाद है। सीमाओं का खुला होने के कारण तथा सीमांकन सही ढंग से न होने के कारण बांग्लादेशी नागरिक आसानी से भारत में प्रवेश कर देश की अंतरिक् सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न कर रहे हैं। 


सीमा विवाद की पहली समस्या यह है कि दोनों देशों की सीमाओं की कुल लम्बाई का 6.4 किमी भाग तथा समुद्री सीमा का रेखांकन नहीं किया गया है जिससे समय-समय पर नागरिकों की पहचान में समस्या होती है। हलाकि भारत बांग्लादेश के साथ समुद्री सीमा विवाद पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायलय के फैसले को मंजूर कर चूका है जो बांग्लादेश के पक्ष में गया है। 


सीमा विवाद की दूसरी समस्या बसाहटों (Enclaves-अन्तःक्षेत्र) को लेकर है। इन बसाहटों की सुरुआत तब हुयी जब कूच बिहार के राजा तथा रंगपुर के राजा पांसे के खेल में हार जाने पर एक-दूसरे को ये क्षेत्र सौप देते थे। 1947 तक कोई समस्या नहीं थी लेकिन 1947 के भारत-पाक विभाजन के बाद जब कूच बिहार भारत को तथा रंगपुर पूर्वी पाकिस्तान को सौपा गया अर्थात कूच बिहार (भारत) के कुछ क्षेत्र पूर्वी पाकिस्तान में चले गए जबकि रंगपुर(बांग्लादेश) के कुछ क्षेत्र भारत में चले गए। यही से विवादों की शुरुआत हुयी। वर्तमान में कुल 162 बसाहटों की समस्या है। जिसमे 111 भारतीय बसाहटें बांग्लादेश में हैं जबकि 51बांग्लादेशी बसाहटें भारत में हैं। सन् 1974 के सीमा समझौते में इनकी परस्पर अदला-बदली का प्रावधान था लेकिन नागरिकता एवं क्षेत्रों के हस्थानंतरण के मुद्दे पर कोई संतोषजनक समाधान के अभाव में यह संभव नहीं हो सका। परन्तु जुलाई 2011 में भारत और बांग्लादेश के द्वारा सयुक्त जनगणना करायी गयी जिसमें इन क्षेत्रों की अधिकांश आबादी ने जहाँ हैं वहीँ रहने की इच्छा व्यक्त करी। तद् अनुसार 6 सितम्बर 2011को दोनों देशों के मध्य बसाहटों की अदला-बदली से सम्बंधित समझौता हुआ जिसे ‘मनमोहन-शेख हसीना समझौता-2011’ के नाम से जाना जाता है। लेकिन भारत का कोई भी भूभाग बिना संविधान संसोधन के किसी को सौंपा नहीं जा सकता अतः संविधान संशोधन विधेयक (119वां) लाया गया। UPA सरकार के समय भाजपा तथा तृणमूल कांग्रेस के विरोध के कारण यह पास नहीं हो सका था लेकिन NDA सरकार ने इसे मई 2015 में संसद से पारित करा लिया है। यह संशोधन विधेयक 100 वां संविधान संशोधन अधिनियम कहलाया। इसके प्रावधानों के तहत केवल लैंड की अदला-बदली की गई न कि जनसँख्या की। यह लोगों पर छोड़ दिया गया कि वे कहां रहना चाहते हैं। शांतिपूर्ण ढंग से सीमा विवाद हल हो जाने की दिशा में इसे ऐतिहासिक माना गया।


2- नदी जल विवाद


भारत और पाकिस्तान की भाँति भारत और बांग्लादेश के मध्य भी नदी जल विवाद संबंधो में खटास का प्रमुख कारण है। क्योकि कई नदियां जैसे- गंगा ब्रह्मपुत्र भारत में प्रवाहित होने के पश्चात् बांग्लादेश में प्रवेश करती हैं। जब भी भारत इन नदियों पर कोई परियोजना स्थापित करना चाहता है तो बांग्लादेश इसलिए विरोध करता है कि उसके यहाँ पानी कम पहुँचेगा जिससे उसके आर्थिक हितों को नुकसान पहुँचेगा। ऐसे ही विवादों में मुख्य हैं- फरक्का बांध विवाद, तीस्ता नदी जल विवाद, फेनी नदी जल विवाद तथा तिपाईमुख परियोजना। जिसमे से भारत की उदारता के कारण सन् 1996 में भारतीय प्रधानमंत्री देवगौड़ा एवम् बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के मध्य हुए समझौते के द्वारा फरक्का बांध विवाद को सुलझा लिया गया है। शेष विवाद अभी अनसुलझे हैं। आशा यह की जा रही थी कि भारतीय प्रधानमंत्री मोदीजी के द्वारा तीस्ता नदी जल विवाद सुलझा लिया जायेगा लेकिन पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से सहमति न बन पाने के कारण यह विवाद अनसुलझा रह गया। 


3- न्यू मुर द्वीप विवाद


यह द्वीप बंगाल की खाड़ी में स्थित है जिसकी कोलकाता से दुरी 6 किमी तथा ढाका से दुरी 7.5 किमी है। कानूनन इस पर भारत का अधिकार होना चाहिए लेकिन बांग्लादेश इसे अपने अधिकार में लेना चाहता है जिसके कारण यह द्वीप दोनों देशों के मध्य विवादों में रहा है। सन् 1981 में जनरल जियाउल हक 8 युद्धपोत यहाँ भेजे थे जिससे कारण द्वीप को खाली कराने हेतु भारतीय नौसेना एक्सन में आ गयी थी। इस समय युद्ध की स्थिति तैयार हो गयी थी लेकिन इसी समय जनरल जियाउल हक की हत्या हो जाती है तथा बांग्लादेश के शासन की बागडोर जनरल इरसाद के हाथों में आ जाती है जिन्होंने उस समय द्वीप पर भारत की संप्रभुता को स्वीकार कर लिया था। लेकिन बीच-बीच में यह विवाद फिर खड़ा हो जाता है। हलाकि पता चला है कि यह द्वीप इस समय समुद्र में डूब चुका है।


4- शरणार्थियों की समस्या


भारत और बांग्लादेश की अंतर्राष्ट्रीय सीमा पूर्णतया कृत्रिम है। अतः बांग्लादेश से लोग चोरी छुपे भारत आते रहते हैं। बांग्लादेश से सटे भारतीय राज्य पश्चिमी बंगाल असम मेघालय त्रिपुरा तथा मिजोरम में बांग्लादेश से आये हुए शरणार्थियों की संख्या कहीं-कहीं इतनी अधिक हो गयी है कि यहाँ मूल भारतियों की स्थिति अल्पसंख्यक की है। भारत के 25 विधानसभा क्षेत्रों में स्थिति ऐसी है कि वहाँ कौन प्रत्यासी चुनाव में विजयी होगा, यह बांग्लादेश से आये हुए आदेश पर निर्भर करता है। इस समस्या के कारण कभी-कभी सांप्रदायिक दंगे भी हो जाते हैं जैसा की अगस्त 2012 में असम में हुआ था। जिसके प्रभाव से बेंगलुरु हैदराबाद मुम्बई तथा इलाहाबाद में भी दंगे हुए। 


5- तस्करी की समस्या


बांग्लादेशी भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों में लगातार मादक द्रव्यों एवम् सेक्स वर्केर्स की सप्लाई करते रहते हैं जो भारतीय नवयुवकों के नैतिक पतन में सबसे ज्यादा खतरनाक कारण साबित हो रहा है। 


6- आतंकवाद की समस्या


पूर्वोत्तर में कुछ ऐसे संगठन सक्रीय हैं जो सेवन सिस्टर स्टेट्स को भारत से अलग कर देना चाहते हैं। ऐसे ही संगठनों में प्रमुख है-ULFOSS ( यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ़ सेवन सिस्टर्स )। इसे बांग्लादेश की कट्टरपंथी ताकतों तथा ISI का समर्थन प्राप्त है। इसके लिए पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी ISI मदद भी कर रही है। इनको प्रशिक्षण देने हेतु बांग्लादेश में शिविर स्थापित किये गए हैं। यह सभी भारत विरोधी गतिविधियां भारतीय संप्रभुता के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। 


7- चीन फैक्टर


चीन भारत को घेरने की अपनी मोतियों की माला नीति में बांग्लादेश को भी शामिल किया हुआ है। वह बांग्लादेश को अपने पक्ष में करने हेतु लगातार उसकी आर्थिक मदद कर रहा है। बांग्लादेश के चटगांव बंदरगाह पर अपना नौ-सैनिक बेस स्थापित कर रहा है जो भारत के सामरिक हितों के प्रतिकूल है। 


8 - अन्य विवाद- बांग्लादेश भारत विरोधी इस्लामिक कट्टरपंथी जमातों का समर्थन करता है।भारतीय सेना को पूर्वोत्तर भारत में जाने के लिए अपने इलाके से रास्ता देने से इंकार करता है।भारत को प्राकृतिक गैस का निर्यात करने से इंकार करता है तथा म्यांमार को भी बांग्लादेशी इलाके से होकर भारत मे प्राकृतिक गैस की सप्लाई नही करने देता। बांग्लादेश का भारत पर यह भी आरोप है कि भारत चटगाँव के पर्वतीय क्षेत्र में विद्रोह भड़काने का प्रयास करता है।भारत बांग्लादेश के प्राकृतिक गैस के संसाधनों को हडपना चाहता है तथा अपने आर्थिक हितों को पूरा करने के लिए पड़ोसियों पर मुक्त व्यापार थोपने का प्रयास करता है।


सहयोग के प्रमुख बिंदु


बांग्लादेश की वर्तमान सरकार भारत के साथ संबंधों के सुधार की दिशा में अच्छा प्रयास कर रही है जिसके चलते वर्तमान में बांग्लादेश की भूमि से भारत विरोधी गतिविधियां धीमी हो गयी हैं। इसके अलावा भारत व बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि न होते हुए भी वर्तमान सरकार ने उल्फा के टॉप कमांडरों को भारत को सौपा है। वर्तमान में पाक (ISI) की गतिविधियां बांग्लादेश में सक्रीय नहीं हो पा रही हैं अतः ISI बांग्लादेश के कट्टरपंथी तत्वों के सहयोग से शेख हसीना सरकार को अपदस्थ करने का निरंतर प्रयास कर रही है। जिससे बांग्लादेश में पाक समर्थित सरकार की स्थापना की जाय तथा बांग्लादेश की भूमि से भी भारत विरोधी गतिविधियां सक्रीय की जा सके। शेख हसींन के इसी सहयोग के कारण घरेलू राजनीति में उन पर ‘भारत की कठपुतली’ होने के आरोप भी लगते रहे हैं।


दोनों देशों के मध्य सम्बन्ध सुधार हेतु ढाका – कोलकाता के बीच मैत्री एक्सप्रेस 2008 में प्रारम्भ किया गया। भारतीय प्रधानमंत्री मोदीजी की बांग्लादेश यात्रा (6 जून 2015) के दौरान कोलकाता-ढाका-अगरतला तथा ढाका-शिलांग-गुवाहाटी के बीच बस सेवा प्रारम्भ की गयी। इस दिशा में और भी कार्य हो रहे हैं। बांग्लादेश की स्वतंत्रता में योगदान हेतु पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को बांग्लादेश ने ‘स्वाधीनता सम्मानोना पुरस्कार’ दिया है। इसी कड़ी में पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी को ‘फ्रेंड्स ऑफ बांग्लादेश लिबरेशन वार अवॉर्ड’ से सम्मानित किया गया। उन्हें यह सम्मान 1971 में बांग्लादेश के गठन में सहयोग के लिए दिया गया, तब वे सांसद थे।


निष्कर्ष


निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि भारत-बांग्लादेश सम्बन्ध बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन से प्रभावित होता है, जिससे संबंधों में मजबूती नहीं आ पाती है। जबकि भारत बांग्लादेश की मदद के लिए बड़े भाई की तरह सदैव तैयार रहता है। भारत बांग्लादेश के विकास हेतु पर्याप्त धन मुहैया कराता है।भारत और बांग्लादेश का साझा इतिहास रहा है लेकिन सिर्फ इतिहास साझा होने से रिश्ते नहीं बनते इसके लिए दोनों देशों को एक दूसरे को समझना होगा।


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भारत - श्रीलंका संबंध


श्रीलंका में जातीय संघर्ष की समस्या को स्पष्ट कीजिए तथा इसके कारण भारत - श्रीलंका के रिश्ते कैसे प्रभावित हो रहे हैं? स्पष्ट कीजिए।


श्रीलंका भारत के दक्षिण में स्थित हिंद महासागर में एक छोटा सा द्वीपीय देश है। भारत के साथ प्राचीन काल से ही इसके धार्मिक एवं सांस्कृतिक संबंध रहे हैं। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार - प्रसार हेतु अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा था। अंग्रेजी शासन काल में भारत और श्रीलंका दोनों ही ब्रिटेन के उपनिवेश थे। 15 अगस्त 1947 को भारत तथा 4 जनवरी 1948 को श्रीलंका को आजादी मिली। लेकिन आजादी के साथ ही दोनों देशों के मध्य कुछ मतभेद भी उभर कर आए, जिन्हें आज तक सुलझाया नहीं जा सका है। यही मतभेद दोनों देशों के संबंधों को प्रभावित कर रहे हैं। 


श्रीलंका में जातीय संघर्ष की समस्या


ब्रिटिश उपनिवेश काल में अंग्रेज, भारतीय तमिल क्षेत्र के मजदूरों को श्रीलंका के चाय बागानों में काम करने हेतु ले जाया करते थे, जो बाद में वही बस गए। अतः श्रीलंका के उत्तरी भाग जिसे जाफना प्रायद्वीप कहा जाता है, में तमिलों की बहुलता हो गई। जब वहां के मूल निवासी अर्थात बहुसंख्यक सिंहली लोगों को यह प्रतीत होने लगा कि तमिलों के कारण हमारे अधिकारों व अवसरों में कमी हो रही है, तो वे तमिलों से ईर्ष्याभाव रखने लगे तथा श्रीलंका सरकार पर दबाव डालने लगे कि तमिलों को देश से निष्कासित कर दिया जाए। अतः श्रीलंका सरकार ने 1949 में एक नागरिकता अधिनियम पारित किया। जिसके तहत वही लोग श्रीलंका के नागरिक समझे जाएंगे, जिनका जन्म या जिनके माता-पिता का जन्म श्रीलंका में हुआ हो तथा 1939 से श्रीलंका में रह रहे हों। इस कानून के प्रभाव में आने पर लाखों की संख्या में तमिल विदेशी हो गए अर्थात उनकी श्रीलंका की नागरिकता समाप्त हो गई। यही श्रीलंका में जातीय संघर्ष और भारत से संबंधों में तनाव का मुख्य कारण बना। 


दोनों देशों के मध्य कई चारणों में वार्ता के उपरांत भारतीय प्रधानमंत्री नेहरू और श्रीलंका के प्रधानमंत्री जॉन कोटलेवाला के मध्य सन 1954 में एक समझौता हुआ।


 जिसके महत्वपूर्ण प्रावधान इस प्रकार थे-


1- जो तमिल श्रीलंका की नागरिकता चाहते हैं उन्हें नागरिकता प्रदान की जाए।


2- जो श्रीलंका की नागरिकता नहीं चाहते हैं उन्हें श्रीलंका छोड़ना होगा।


3- तमिलों को भी श्रीलंका की संसद में प्रतिनिधित्व दिया जाए।


लेकिन श्रीलंका सरकार ने ऐसे दांव-पेच अपनाए कि केवल 75000 तमिलों को ही श्रीलंका की नागरिकता दी जा सकी। शेष तमिलों को बलपूर्वक विमानों में बिठाकर भारत रवाना किया जाने लगा लेकिन भारत सरकार ने इन्हें लेने से इनकार कर दिया। अतः दोनों देशों के मध्य रिश्तो में कड़वाहट उत्पन्न हो गई। लेकिन शास्त्रीजी के प्रयासों से 1964 में श्रीलंका की प्रधानमंत्री श्रीमती भंडारनायके के साथ एक और समझौता हुआ। इसके तहत 3 लाख तमिलों को श्रीलंका की नागरिकता दी गई तथा 5.5 लाख तमिलों को 15 वर्ष के अंदर अपना काम समेट कर देश को खाली करना था। लेकिन इस समझौते के बाद भी श्रीलंका में जातीय-विवाद नही सुलझ सका। सन 1977, 1981 और 1993 में तमिलों और सिंहली लोगों के मध्य हिंसात्मक संघर्ष हुए। इन संघर्षों में श्रीलंका सरकार के हाथ होने की बात भी प्रकाश में आई। अतः तमिलों ने सरकार से प्रत्यक्ष रूप से निपटने की योजना बनाई। विभिन्न तमिल संगठनों का उदय हुआ, इसमें सबसे महत्वपूर्ण संगठन LITTE (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम) था। जिसका प्रमुख प्रभाकरण था। अब लिट्टे और श्रीलंका की सेना के मध्य प्रत्यक्ष गृहयुद्ध शुरू हो गया। युद्ध की विभीषिका को देखते हुए भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मध्यस्थता किए। अतः सन 1987 में राजीव गांधी एवं श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति जयवर्धने के मध्य एक समझौता हुआ। 


जिसके महत्वपूर्ण प्रावधान इस प्रकार थे-


1- भारतीय और श्रीलंका की सेनाएं संयुक्त रूप से लिट्टे को 48 घंटे के अंदर युद्ध विराम हेतु तथा 72 घंटे के अंदर हथियार डालने हेतु मजबूत करेंगी।


2- तमिल बहुल जाफना क्षेत्र में एक परिषद गठित की जाएगी।


3- सिंहली के अतिरिक्त तमिल और अंग्रेजी को भी राजभाषा का दर्जा दिया जाएगा।


इस समझौते को अमल में लाने हेतु भारत सरकार ने श्रीलंका में शांति रक्षक दल या शांति सेना भेजी। यह सेना पूरी इमानदारी से शांति स्थापित करने का प्रयास किया, लेकिन दोनों ही गुटों (सिंहली और तमिल) ने भारत पर अविश्वास किया।श्रीलंका यात्रा के समय  राजीव गांधी को श्रीलंका की सेना ने सलामी दी, इसके बाद जब राजीव गांधी परेड (सलामी दल) का निरीक्षण कर रहे थे उसी समय परेड में सम्मिलित एक सैनिक ने उन पर जानलेवा हमला किया। इसी प्रकार लिट्टे ने भी राजीव गांधी को जान से मारने का षड्यंत्र किया और मई 1991 में एक चुनाव सभा के दौरान तमिलनाडु में उनकी हत्या कर दी। राजीव गांधी की हत्या के बाद भारत सरकार ने लिट्टे पर प्रतिबंध लगा दिया, जिससे श्रीलंका की सरकार खुश हो गई।अतः भारत से रिश्तो को सुधारने हेतु प्रयास होने लगे। 1994 में राष्ट्रपति चंद्रिका कुमार तुंग भारत की यात्रा पर आयी। दोनों देशों के मध्य संबंध सुधार हेतु कई समझौते हुए।


 इसमें मुख्य रूप से 1998 का मुक्त व्यापार समझौता माना जा सकता है। यह समझौता सन 2000 से लागू हुआ। वर्तमान में लिट्टे और प्रभाकरन का खात्मा (2009) हो गया है, लेकिन तमिल समस्या अभी भी बनी हुई है। तमिलों पर श्रीलंका सरकार द्वारा मानवाधिकारों का उल्लंघन अभी भी जारी है। 

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नेपाल


नेपाल के लोग अपने देश में लोकतंत्र को बहाल करने में कैसे सफल हुए? अथवा


1990 से नेपाल में लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया किस प्रकार चल रही है ?


आधुनिक नेपाल का उदय सन 1768 में होता है जब महाराज पृथ्वी नारायण शाह ने नेपाल का एकीकरण करके एक राजतंत्र की स्थापना की।लेकिन आगे चलकर 1846 में नेपाल में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना में घटित होती है। राणा जंगबहादुर वास्तविक सत्ता अपने अधीन कर लेते हैं,और राजा मात्र एक नाममात्र के राष्ट्राध्यक्ष रह जाते हैं। अर्थात नेपाल में राणाओं का निरंकुश शासक प्रारंभ हो गया। राणाओं के इस शासन से राजा और नेपाल की जनता दोनों त्रस्त आ चुके थे।अतः सन 1950 में नेपाली कांग्रेस पार्टी  के नेतृत्व में जनता ने राजा त्रिभुवन को समर्थन देकर क्रांति के माध्यम से नेपाल को निरंकुश और अक्षम राणाओं के शासन से मुक्त कर दिया। सन 1955 में राजा त्रिभुवन की मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र महेंद्र राजा बने।राजा महेंद्र ने ऐसी संसदीय शासन प्रणाली की स्थापना की जिसमें प्रधानमंत्री को सत्ताधारी बनाया गया, किन्तु राजा की प्रभावी स्थिति को भी बरकरार रखा गया।1959 में गिरजा प्रसाद कोइराला निर्वाचित प्रधानमंत्री बने।जनवरी 1961 में राजा महेन्द्र ने पंचायत व्यवस्था की घोषणा की जो लोकतंत्र को जमीनी स्तर पर ले आने की पहल थी। लेकिन अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए राजा ने इस व्यवस्था में राजनीतिक दलों के प्रवेश को वर्जित कर दिया।विरोध करने पर विपक्षी नेताओं को जेल में बंद कर दिया।लोगों की स्वतंत्रता प्रतिबंधित कर दी गई।ऐसा लगा कि नरेश अपने देश में दलहीन पंचायती लोकतंत्र स्थापित करना चाहते थे। सन 1962 में नया संविधान(पंचायत संविधान) लागू हुआ जिसकी मुख्य विशेषताएं निम्न थी-


1- हिन्दू राज्य की स्थापना


2- सक्रिय राजशाही का नेतृत्व


3- दलहीन व्यवस्था


4- सामाजिक वर्गो के बीच समन्वय


5- मिश्रित अर्थव्यवस्था


जनवरी1972 में राजा महेंद्र के निधन के बाद उनके पुत्र वीरेंद्र राजा बने।उन्होंने इस संविधान में अनेक संशोधन किए। लेकिन विपक्षी सक्रिय राजतंत्र की आलोचना करते रहे। जून 2001 में बड़ी दुर्घटना हुई जब राजकुमार ने राजा वीरेंद्र, रानी ऐश्वर्या तथा शाही घराने के कई लोगों की हत्या करके स्वयं आत्महत्या कर ली।तब राजा के छोटे भाई ज्ञानेंद्र राजा बने।अब तक साम्यवादी चीन की प्रेरणा से माओवादियों ने अपनी ताकत बड़ा ली थी।हलाकि 1990 के दशक से ही नेपाल में माओवादियों के प्रभाव दिखने लगे थे। अब राजा, लोकतंत्र समर्थक और माओवादियों में संघर्ष प्रारम्भ हो गया।अतः सन 2005 में नेपाल के राजा ज्ञानेंद्र ने आपातकाल की घोषणा करते हुए संसद को भंग करके सेना के बल पर शासन की बागडोर अपने हाथ में ले ली। जिससे नेपाल में लोकतंत्र का संकट पैदा हो गया। इसके विरोध में नेपाल में व्यापक आंदोलन चला। लोगों की स्वतंत्रता को समाप्त करके नेताओं को नजरबंद कर दिया गया। इसके विरोध में राजनीतिक दलों ने अपना आंदोलन और तेज कर दिया। 7 राजनीतिक दलों ने मिलकर 19 दिनों तक नेपाल नरेश के विरुद्ध हिंसक आंदोलन चलाया गया। जिसमें 21 लोग मारे गए तथा 5000 से अधिक लोग घायल हुए। धीरे-धीरे नेपाल नरेश पर बाहरी दबाव भी पढ़ना शुरू हो गया अंततः अप्रैल 2006 में नेपाल नरेश को आपातकाल की घोषणा वापस लेनी पड़ी। संसद को पुनः बहाल करना पड़ा तथा गिरिजा प्रसाद कोइराला को देश का अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। अप्रैल 2008 में नेपाल में संविधान सभा के लिए चुनाव हुए जिनमें माओवादियों को बहुमत मिला। इस संविधान सभा ने जुलाई 2008 में राम बरन यादव को नेपाल का पहला राष्ट्रपति चुना जबकि 15 अगस्त 2008 को सीपीएन(एम) नेता पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' को प्रधानमंत्री चुना। इस प्रकार 2008 में पिछले 240 वर्षों से चले आ रहे राजतंत्र का सदैव-सदैव के लिए अंत हो गया। 20 दिसंबर 2015 को नेपाल का नया संविधान लागू किया गया।इस संविधान के तहत नेपाल को भारत की भांति धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया। वर्तमान में  राम चंद्र पौडेल  राष्ट्रपति तथा के पी शर्मा ओली प्रधानमंत्री हैं।


भारत-नेपाल संबंध


नेपाल भारत का सामरिक रूप से महत्वपूर्ण पड़ोसी देश है। दोनों देशों के मध्य प्राचीन काल से ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक संबंध रहे हैं। नेपाल के उत्तर में स्थित तिब्बत पर जब से चीन का प्रभुत्व स्थापित हो गया है तब से नेपाल की स्थिति भारत के लिए पहले से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है । भारत और नेपाल के रिश्ते प्रायः सामान्य रहते हैं परंतु जैसे ही नेपाल में राजनैतिक उतार-चढ़ाव होता है तो दोनों देशों के बीच पुराने विवाद विस्फोटक रूप ले लेते हैं। इन्हीं परिस्थितियों का लाभ उठाकर भारत विरोधी शक्तियां यथा चीन तथा पाकिस्तान वहां सक्रिय होकर भारत की सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती उत्पन्न करने लगती हैं । आइये जानते हैं कि नेपाल की तरफ से भारत की सुरक्षा के लिए चुनौती उत्पन्न करने वाले कारक कौन कौन से हैं।


2015 तक नेपाल की पहचान संसार में एकमात्र हिंदू राष्ट्र के रूप में की जाती थी। यह एक स्थल रुद्ध देश है। भारत और चीन दो एशियाई दिग्गज देशों के साथ इसकी सीमाएं मिलती हैं। तीन ओर से( पूर्व पश्चिम एवं दक्षिण) यह भारत से तथा एक ओर उत्तर से यह तिब्बत (चीन अधिकृत) से घिरा है। नेपाल को भारत और चीन के मध्य एक बफर स्टेट माना जाता है। भारत के पांच राज्य सिक्किम, पश्चिमी बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड नेपाल के साथ 1751 किलोमीटर लंबी सीमा बनाते हैं।


विश्व में भारत नेपाल जैसा संबंध अन्यत्र कहीं और देखने को नहीं मिलता। सामाजिक और सांस्कृतिक आधार पर दोनों देशों में इतनी अधिक समानता है कि दोनों के बीच राजनीतिक विभाजन कठिन हो जाता है। दोनों देश न केवल खुला बॉर्डर साझा करते हैं बल्कि लोगों का बिना किसी बाधा आवागमन भी होता है। दोनों तरफ के लोग वैवाहिक संबंधों के द्वारा भावनात्मक रूप से भी जुड़े हैं। इन्हीं संबंधों की विशिष्टता को इंगित करते हुए पुष्पेश पंत कहते हैं कि सीमावर्ती इलाके में रहने वाले भारतीय और नेपाली लोग किसी अंतरराष्ट्रीय सीमा को रुकावट के रूप में नहीं देखते। यहां के गांवों और कस्बों के निवासियों के बीच रोटी-बेटी का संबंध है। इनके आर्थिक जीवन के ताने-बाने भी आपस में जुड़े हैं।


भारत और नेपाल के मध्य ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों की शुरुआत प्राचीन काल से ही हो चुकी थी। परंतु राजनीतिक संबंधों की स्थापना 1950 में मान सकते हैं। जब दोनों देश 31 जुलाई 1950 को भारत नेपाल 'शांति और मैत्री संधि' पर हस्ताक्षर किए।


भारत-नेपाल शांति एवं मैत्री संधि 1950


1- दोनों देश किसी विदेशी आक्रमण या उसकी सुरक्षा के लिए उत्पन्न संकट को सहन नहीं करेगा। 


2- अपने प्राचीन संबंधों के आधार पर दोनों देश चिरकालीन शांति एवं मैत्री बनाए रखेंगे तथा परस्पर संप्रभुता अखंडता एवं स्वतंत्रता को पूर्ण सम्मान देंगे।


3- सामान्य रूप से नेपाल अपने प्रयोग के लिए युद्ध सामग्री भारत से खरीदेगा तथा किसी अन्य देश से युद्ध सामग्री खरीदने से पूर्व वह भारत से परामर्श करेगा।


4- तिब्बत नेपाल और भूटान के मध्य के दर्रों पर निगरानी रखने के लिए भारतीय और नेपाली सेनाएं संयुक्त रूप से तैनात की जाएंगी।


5- नेपाली नागरिकों को भारत में नागरिकों का दर्जा दिया जाएगा।


6- दोनों देशों के नागरिकों को मुक्त आवागमन की सुविधा प्रदान की जाएगी।


इस संधि का फायदा उठाकर कर 60 लाख नेपाली भारत मे काम करते हैं। परंतु नेपाल को वर्तमान में इस संधि पर आपत्ति है और वह लगातार इसे रद्द करने की मांग कर रहा है। नेपाल का मानना है कि यह संधि 1950 में हुई थी, तब नेपाल में राजतंत्रात्मक शासन था परंतु वर्तमान में वह संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य बन चुका है। इसके अलावा नेपाल एक भूमि आबद्ध देश है परंतु इस संधि ने उसे भारत आबद्ध बना दिया है।  इसके अतिरिक्त नेपाल द्वारा भारत के अलावा किसी अन्य देश से युद्ध सामग्री खरीदने से पूर्व भारत से परामर्श लेने की बात नेपाली संप्रभुता के विरुद्ध है। इन्ही आपत्तियों को आधार बनाकर आज नेपाल में भारत विरोधी जनमत का निर्माण किया जा रहा है।


नेपाल का ऐसा मानना है कि भारत उसके अंदरूनी मामलों में दखल करता है और उसके नदी जल और पनबिजली पर आँख गड़ाये है।


नेपाल सरकार भारत विरोधी तत्वों के विरुद्ध आवश्यक कदम नही उठती।नेपाल के रास्ते पाक समर्थित आतंकियों का भारत में प्रवेश की घटनाएं भी आम हो गयी हैं। दिसंबर1999 में इंडियन एयरलाइंस के विमान नेपाल के रास्ते से ही हाईजैक हुआ था।


मधेशी समस्या- मधेशी नेपाल तराई क्षेत्र में रहने वाले लोग हैं जिनका भारत से संबंध है।इनका भारत के सीमांत क्षेत्र के लोगों से रोटी-बेटी का संबंध है। 2015 से लागू नवीन संविधान में मधेशी लोगों को उनकी जनसंख्या के अनुसार पर्याप्त प्रतिनिधित्व नही दिया गया है जिसके कारण ये नाराज होकर आंदोलन पर उतर आए और भारत नेपाल सीमा को जाम कर दिए।जिस पर नेपाल ने भारत पर आरोप लगाया कि मधेशी आंदोलन भारत समर्थित है।


नेपाल चीन दोस्ती - मधेसियों द्वारा आर्थिक नाकेबंदी ने चीन को एक अच्छा मौका दे दिया। इस दौरान चीन ने नेपाल को पारगमन के नवीन रास्ते उपलब्ध कराएं। इसी के तहत दोनों देशों के बीच सीमा व्यापार मार्ग खोलने पर सहमति बनी। नेपाल को अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए चीन ने अपने पत्तनों की सुविधा भी उपलब्ध कराने की घोषणा की है। इसी दौरान अक्टूबर 2015 में नेपाल सरकार ने पेट्रोलियम आयात करने के लिए चीन से करार किया। इन सब के अतिरिक्त चीन ने नेपाल सरकार से तिब्बत की राजधानी ल्हासा से काठमांडू तक रेल लाइन बिछाने का समझौता भी किया है। जहां तक चीन नेपाल के ढांचागत संरचना में निवेश कर रहा है तो इससे भारत को कोई समस्या नहीं है, नेपाल की सामरिक स्थिति महत्वपूर्ण होने के कारण उसे दोनों देशों से ही लाभ उठाने की स्वतंत्रता है किंतु नेपाल और चीन के बीच सैनिक संबंधों को भी बढ़ावा दिया जा रहा है जो भारत की सुरक्षा के लिए चिंता का विषय है। दिसंबर 2016 में चीन ने नेपाल के साथ अपने पहले संयुक्त सैन्याभ्यास की घोषणा की, जिसे नेपाल ने स्वीकार भी कर लिया। यह भारत-नेपाल शांति और मैत्री संधि 1950 का खुले तौर पर उल्लंघन है क्योंकि ऐसा करने से पहले नेपाल को भारत को सूचित या उससे परामर्श करना चाहिए था।


नेपाल का एक तपका (माओवादी) भारत को हमेशा से ही एक साम्राज्यवादी देश मानता हैं। चीन सदैव इसी स्थिति का लाभ उठाकर नेपाल में भारत की भूमिका को इस तरह पेश किया कि भारत नेपाल के लिए सबसे बड़ा खतरा है। इसी को आधार बनाकर चीन समर्थित माओवादियों ने भारत विरोध को आम जनता तक पहुंचाया। इसके अलावा नेपाल की माओवादी गतिविधियां भारतीय सुरक्षा के लिए खतरा है। भारत में चल रहे नक्सलवादी आंदोलन का ये लोग समर्थन करते हैं।


अभी हाल ही में नेपाल ने एक विवादित मैप जारी किया है जिसमें भारत के तीन स्थल कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा को अपना बताया है जिससे दोनों देशों के बीच तनाव उत्पन्न हो गया है।


उक्त मतभेदों के बावजूद दोनों देशों के बीच व्यपारिक संबंध बहुत अच्छे हैं। नेपाल के कुल विदेशी व्यापार का 66%भारत के साथ होता है। इसके अलावा वैज्ञानिक सहयोग, बिजली उत्पादन (पंचेश्वर परियोजना काली नदी उत्तराखंड) और जल प्रबंधन ग्रिड के मसले पर सहयोग है। जब अप्रैल 2015 में नेपाल में भूकंप आया था तो भारत ने भरपूर सहायता पहुंचाई थी।


अंतरराष्ट्रीय राजनीति में पड़ोसी का कोई विकल्प नहीं होता, इसे दोनों देशों को समझना होगा। नेपाल को यह भी समझना होगा कि चीन उसके ढांचागत संरचना में चाहे कितना भी निवेश कर ले, किंतु वह भूगोल की मुश्किलों को नहीं बदल सकता। किसी भी प्राकृतिक आपदा के समय चीन से कहीं अधिक त्वरित सहायता भारत से नेपाल को पहुंच सकती है। 

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सार्क (SAARC - South Asian Association for Regional Cooperation) दक्षेस


इसका पूरा नाम दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन है। इसकी स्थापना दिसंबर 1985 में बांग्लादेशी राष्ट्रपति जिया-उल-रहमान के प्रयासों से ढाका सम्मेलन से हुई। प्रारंभ में इसमें सात सदस्य थे, लेकिन भारत में आयोजित सार्क के 14वें शिखर सम्मेलन 2007 में अफ़गानिस्तान की सदस्यता के बाद सदस्यों की संख्या 8 हो गई है।


ये सदस्य निम्न हैं-


भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, मालदीव और अफ़गानिस्तान।


सार्क के उद्देश्य


यूरोपीय संघ और आसियान से प्रभावित सार्क के मुख्य उद्देश्य निम्न हैं-


सदस्य राष्ट्रों के मध्य आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा देना है।


सदस्य राष्ट्रों के मध्य व्यापार को बढ़ावा देने हेतु आयात-निर्यात से जुड़ी समस्याओं को दूर करना एवं मुक्त व्यापार क्षेत्र की स्थापना करना।


सदस्य देशों के नागरिकों के कल्याण एवं जीवन स्तर को ऊंचा उठाने हेतु परस्पर सहयोग करना।


दक्षिण एशिया के देशों में सामूहिक आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहित करना।


एक-दूसरे की समस्याओं को समझना एवं पारस्परिक विश्वास बढ़ावा देना।


अन्य विकासशील देशों के साथ सहयोग को बढ़ावा देना।


अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से संबंध बढ़ाकर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।


संगठन


शिखर सम्मेलन- प्रत्येक वर्ष


मंत्रिपरिषद-विदेश मंत्रियों की परिषद (6 माह में बैठक)


सचिवालय-काठमांडू 


महासचिव इसका प्रधान होता है। कार्यकाल- 2 वर्ष


साफ्टा (SAFTA)


इसका पूरा नाम South Asian Free Trade Area है। इस समझौते पर हस्ताक्षर सार्क के 12वें शिखर सम्मेलन 4 जनवरी 2004 इस्लामाबाद में हुए और इसे 1जनवरी 2006 से लागू किया गया। इस समझौते का मुख्य लक्ष्य, सदस्य देशों के बीच आपसी व्यापार में लगने वाले सीमा शुल्क की दरों में धीरे-धीरे कमी लाया जाए। कुछ छोटे देश सोचते हैं कि भारत साफ्टा के माध्यम से उनके बाजारों में सेंध मारना चाहता है और अपनी व्यवसायिक मौजूदगी के जरिए उनके समाज और राजनीति पर असर डालना चाहता है। जबकि भारत का मानना है कि इससे न केवल आर्थिक एवं व्यापारिक सहयोग बल्कि राजनीतिक मामलों में भी सहयोग को बढ़ावा मिलेगा।


सार्क का महत्व


दक्षिण एशिया में सामाजिक आर्थिक एवं सांस्कृतिक सहयोग हेतु स्थापित यह क्षेत्रीय संगठन अपने वास्तविक उद्देश्यों को प्राप्त करने में पूर्णतया सफल नही हुआ। इसका कारण, सदस्य राष्ट्रों के मध्य आपसी मतभेद व राजनीतिक अस्थिरता है। लेकिन इसके बावजूद भी कृषि, ग्रामीण विकास, शिक्षा एवं तकनीकी क्षेत्र में सहयोग के साथ पूंजी निवेश भी हुआ है। भारत लगातार नेपाल, भूटान, बांग्लादेश व अफ़गानिस्तान को विभिन्न प्रकार की सहायता देता चला आ रहा है। चूंकि सार्क के 5 देशों की तटीय सीमा हिंद महासागर से मिलती है अतः हिंद महासागर को शान्ति क्षेत्र बनाने हेतु संयुक्त प्रयास की जरूरत है।

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गुजराल डॉक्ट्रिन से क्या तात्पर्य है??


गुजराल डॉक्ट्रिन भारत की विदेश नीति का प्रमुख सिद्धांत है। यह सिद्धांत भारत के पूर्व प्रधानमंत्री इन्द्र कुमार गुजराल ने दिया था अतः उनके नाम के साथ ही इसे जाना जाता है। इसके अनुसार हमें अपने पड़ोसियों से रिश्ते सुधारने के लिए स्वयं पहल करनी चाहिए न कि पड़ोसियों की पहल का इंतजार अर्थात हमारी भूमिका बिग ब्रदर की होनी चाहिए। पड़ोसियों की छोटी मोटी गलतियों को नजरंदाज करते हुए उनसे संबंध सुधारने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई जी इसी नीति को प्रसारित करते हुए कहा था कि हम केवल पड़ोसी के व्यवहार को बदल सकते हैं न कि पड़ोसी को।



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